SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण - १८; राव माण्डलिक; शिलालेख [४०३ वेदी पर विराजमान है। पीतल के बड़े-बड़े दीपाधारों और धूपदानियों में दोपक और धूप अखण्डरूप से जलते रहते हैं और यात्री लोग यहीं पाकर अपनी-अपनी भेंट चढ़ाते हैं। अन्यान्य मन्दिरों की अपेक्षा इसकी चट्टान छोटी और नीची हैं और यात्रियों के यहाँ तक पहुँचने के लिए चट्टानें काट-काट कर रास्ता बनाया गया है। इस मार्ग में बहुत से शिलालेख थे, परन्तु पत्थर इतना चटखना था कि मुझे एक भो लेख पूरा और ठीक हालत में नहीं मिला; जो दो टुकड़े मैंने प्राप्त किए वे पांच शताब्दियों से कुछ पुराने हैं और वे भी मन्दिर के धर्म-प्राण जीर्णोद्धारक भक्तों के स्मारक मात्र हैं। इनमें से एक (परि० ६) में एक विचित्र ही तथ्य का उल्लेख है कि अपनी उदारता का लेख लिखाने वाले इस व्यक्ति ने दो सौ मोहरें तो दान में दी और इसी अभिप्राय के लिए दो हज़ार मोहरें 'ब्याज पर' उधार भी दी। दूसरा शिलालेख (परि० १२) खंगार के महलों के दरवाजे पर लगा हुआ है। उसमें भी यहाँ के स्वामी राजा माण्डलिक द्वारा जीर्णोद्धार का ही उल्लेख है; परन्तु, यह राजा माण्डलिक प्रथम था अथवा ततीय, इस विषय में तो केवल अनुमान का ही प्राश्रय लेना पड़ेगा क्योंकि बहुत लम्बे समय तक चली आई जूनागढ़, गिरनार को राजधानी, में इसी नाम के चार राजा हो चुके हैं। अतः इस 'अत्यन्त प्राचीन' 'बहुत जूना', दुर्ग पर लगे हुए अस्पष्ट उल्लेख को हमें यहीं छोड़ देना पड़ेगा। परन्तु, हर हालत में वह खंगार का पूर्ववर्ती चौथा राजा था; फिर, इस खंगार नाम के भी तो अनेक राजा हो चुके हैं।' ___ नेमिनाथ के मन्दिर का मैं विस्तार से विवरण नहीं दूंगा। इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि यह एक बहुत विशाल इमारत है और इसका शिखर बहुत ऊंचा है । इन मंदिरों के विषय में जिज्ञासा की शान्ति के लिए प्रत्येक के खाके की आवश्यकता होगी। इसमें सबसे अधिक आकर्षण की वस्तु तो स्वयं नेमिनाथ की श्यामलमूर्ति है जो चट्टानो अथवा काले संगमर्मर की बनी हुई है। परिमाण में यह मूर्ति बहुत बड़ी है और बैठक के आसन की मुद्रा में बनी हुई है, नीग्रो [हब्शी के समान धुंघराले बाल हैं तथा मुखमण्डल पर दया एवं शांति के भाव १ राजपूत-परिवारों में प्रसिद्ध नामों की पुनरावृत्ति करने का बहुत प्रचलन है। उदयपुर के राजघराने में तीन प्रमर हुए हैं, परन्तु दुर्भाग्यवश ये लोग हमारी भांति नामों के साथ अंकों का प्रयोग नहीं करते और किसी बौद्धिक अथवा शारीरिक विशेषता के कारण उसके जीवनकाल में जिन उपाधियों का उपयोग उनकी भिन्नता बताने के लिए किया जाता है वे प्रागे चल कर लुप्त हो जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy