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पश्चिमी भारत की यात्रा परिवर्तित कर देने को सुगम परम्परा से दोनों धर्मों का एक ही समान स्रोत होने पर कुछ प्रकाश पड़ सकता है।
ऊँची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ दूसरा मन्दिर सहस्र-कण पार्श्वनाथ का है जिन पर उनके वाहन अथवा चिह्न (शेष) नाग ने हजार फणों से छाया कर रखी है । यह मन्दिर सोनी-पार्श्वनाथ के नाम से अधिक प्रसिद्ध है क्योंकि दिल्ली के संग्राम नामक सोनी [स्वर्णकार ने अकबर के राज्य में, जिसका वह परम प्रीतिपात्र था, अपने खर्चे से इसका जीर्णोद्धार कराया था। इस जैन-श्रावक के अतुल धन, जादुई-चमत्कार और धातु-परिवर्तन की चतुराई के सम्बन्ध में बहतसी कहानियाँ प्रचलित हैं। यद्यपि सोमप्रीति राजा के मन्दिर की अपेक्षा इस मन्दिर की बाह्य आकृति में पुरातनता की कमी दृष्टिगत होती है, परन्तु भीतर से हल्के हरे और चमकीले चट्टानी पत्थरों के खम्भों को लिए हुए यह काफी अच्छा दिखाई पड़ता है। साधारणतया इसकी बनावट पूर्ववणित प्रकार की ही है और आँगन के बगल की दीवारों के सहारे-सहारे कोठरियां बनी हुई हैं जिनमें विभिन्न श्रद्धालु भक्तों ने अपनी-अपनी भावना के अनुसार महन्तों अथवा गुरुपों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ स्थापित कर दी है।
इस से आगे का भाग 'गढ़ की टूक' कहलाता है । ऋषभदेव अथवा आदिनाथ का मन्दिर बहुत सुन्दर है, जिसमें बहुत से अच्छे-अच्छे स्तम्भ और कक्ष हैं, परन्तु यदि उनका सूक्ष्म विवरण देने लगें तो वह अनावश्यक रूप से लम्बा और अरुचिकर हो जायगा । यहाँ सफेद संगमर्मर और पीले सूर्यकान्त के बने हुए मेरु और समेत प्रादि पवित्र जैन-शिखरों की लघु प्रतिकृतियां भी विद्यमान हैं तथा चौक की चारदीवारी के सहारे-सहारे छोटी कोठरियों की पंक्ति चली गई है जिनमें 'चौबीस' [तीर्थङ्कर] विराजमान हैं।
समूह का अन्तिम मन्दिर, जो खंगार के महलों से सटा हुआ है, गिरनार के संरक्षक देवता नेमिनाथ का है। यद्यपि यह मन्दिर मूलतः बहुत पुराना है परन्तु असंस्कृत-रुचिपूर्ण आधुनिक परिवर्तनों के कारण इसको आकृति इतनी विकृत हो गई है कि दृश्य की शालीनता को लेकर सोमप्रीति के मन्दिर के सामने यह कहीं भी नहीं ठहरता । शत्रुञ्जय पर आदिनाथ के मन्दिर के समान इसका अन्तरंग भाग भी भित्तिचित्रों और चमकीले जड़ावों से सजा हुआ है, जिनसे आधुनिक भक्तों की सुरुचि की अपेक्षा समृद्धि का ही अधिक प्राभास मिलता है। देवखण्ड (Devachunda) अथवा गुम्बर (Gumbarra-गुम्बज) में, जिस शब्द से निजमन्दिर को अभिहित किया जाता है, सोने को जंजीरों और कंगनों से शृंगारित रजतमुकुट धारण किये और होरकनेत्रों से सुशोभित नेमिनाथ की श्यामल मूर्ति
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