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________________ प्रकरण १८; कुमारपाल का मन्दिर [ ४०१ आगे ही 'सोमपट्ट' (Sompat ) अथवा निज मन्दिर है जिसमें एक प्रशस्त वेदी पर पार्श्व (नाथ) की मूर्ति विराजमान है । खम्भे चौदह फीट से अधिक ऊँचे नहीं हैं, परन्तु गुम्बज की छत को देखते हुए, जिसमें चार-चार खम्भों के बीच में विभिन्न प्रकार की निर्माणकला का प्रदर्शन हुआ है, प्रभावकारी और ठोस प्रायोजना की तुलना में यह ऊँचाई कुछ भी नहीं है । भीतर और बाहर दोनों र से देखने पर यहाँ पैंसिल के लिए कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत हो जाता है । पश्चिमी द्वार के पास ही जमीन के नीचे तहखाने में होकर निकलने का एक गुप्त मार्ग है, जिसमें होकर महमूद बेगड़ा द्वारा उसके देश और राजधानी पर अधिकार कर लेने के उपरान्त, राजा (राव) माण्डलिक निकल भागा था । इस मन्दिर से मैं भीमकुण्ड गया, जिसको स्थानीय यदुवंशी राजा भीमक ने देवकूट के उत्तरी सिरे पर खुदवाया था । कुण्ड और सीढ़ियाँ चट्टान में काटी गई हैं, जिनके द्वारा सत्तर फीट लम्बी और पचास फीट चौड़ी परिमिति में भरे पानी तक पहुँचते हैं । इसके पास ही दूसरा मन्दिर है जिसके लिए कहा जाता है कि प्रणहिलवाड़ा के कुमारपाल ने बनवाया था । इसकी टूटी-फूटी अवस्था को देखते हुए ऐसा सम्भव भी लगता है क्योंकि, कहते हैं कि, उसके उत्तराधिकारी ने तारिंगा के अजितनाथ मन्दिर के अतिरिक्त उसके द्वारा निर्मार्पित सभी मन्दिरों को तुड़वा दिया था । खम्भों पर टिके मध्यपट्टों के ऊपर-ऊपर की सभी बनावट नष्ट कर दी गई है और कोई-कोई तो स्तम्भ प्रथवा मध्यपट्ट गायब भी है । मैं पहले संकेत कर चुका हूँ कि महमूद बेगड़ा अथवा अन्य जिस किसी मुसलिम विजेता ने जूनागढ़ पर मसजिद बनवाई है, उसने वहाँ के अन्य मन्दिरों के साथ-साथ इस मन्दिर की भी सामग्री का उपयोग किया है । इस मन्दिर का नक्शा पार्श्वनाथ मन्दिर की पूर्ण प्रतिकृति है और विस्तार भी प्रायः उतना हो है। जैन श्रावकों की पञ्चायत ने, जो मन्दिरों का प्रबन्ध करती है, इसके जीर्णोद्धार का कार्य चालू कर दिया था और निज मन्दिर के कुछ भाग का काम पूरा भी हो गया था परन्तु, तभी इस प्रदेश के महा सेठ की धार्मिक कट्टरता ने इसमें बाधा उपस्थित कर दो, क्योंकि उसने इसमें अपने इष्टदेव शिव के लिंग की स्थापना करने का निश्चय कर लिया था । प्रबन्धक जनों ने विरोध का वही मार्ग अपनाया, जो उनकी शक्ति में था अर्थात् उन्होंने मन्दिर की देहरी पर प्राण दे देने की धमकी दी । विषय यहीं समाप्त होता है और गिरनार पर्वत पर कुमारपाल का नाम चलने की सम्भावनाएं भी प्रायः समाप्त हो जाती हैं । शैवों श्रौर जैनों में एक देवता के मण्डप को दूसरे के में, अर्थात् आदिनाथ और आदीश्वर के में, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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