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________________ ४०० ] पश्चिमी भारत की यात्रा लिए पाठकों को मेरी पूर्व कृति ' देखनी पड़ेगी; ये जैन- वास्तुकला के, जिसे मैं हिन्दू वास्तुकला हो कहूँ, वे सर्वोत्कृष्ट नमूने हैं जो आज तक पश्चिमी जगत् को प्राप्त नहीं हुए हैं । इस स्मारक में जिसकी आयोजना यद्यपि सामान्य नहीं है, गिरनार पर्वत पर ही नहीं, वास्तव में समस्त सौराष्ट्र में सर्वोत्कृष्ट स्थापत्यकला के उदाहरण का प्रदर्शन हुआ है । चट्टान के सिरे पर होने के कारण इसकी स्थिति बहुत सुन्दर बन पड़ी है; भूतल से ऊपर तीन मंजिलों और भूरे ग्रानिट पत्थर का स्तम्भ - समूह इसको और भी गौरवपूर्ण छवि प्रदान करता है । नीचे दिये हुए भू-चित्र से इसकी बनावट का सामान्य ज्ञान हो सकेगा । यद्यपि इसे बिलकुल सही नहीं कहा जा सकता । Caey of measurenient, will give moueral fdes of its enniscenction. The entrance (now blocked up) to the west, was by flight pe ste पश्चिमी प्रवेश-द्वार से (जो अब बन्द कर दिया गया है) एक सोपान सरणि खम्भों पर टिकी ( ड्योढ़ी) तक जाती है जिसमें होकर मन्दिर के मुख्य भाग में प्रवेश करते हैं । तिहरी स्तम्भ पंक्ति पर छत से प्राच्छादित विशाल कक्ष में होकर मण्डप अथवा केन्द्रीय गुम्बज में पहुँचते हैं जो प्रायः तीस फीट लम्बा और इतना ही चौड़ा है और स्तम्भों पर खड़ा है । स्तम्भ पंक्ति युक्त दीर्घाएं, जिनमें चौकोर खम्भे दीवार के सहारे खड़े हैं, इसे एक दालान से और अन्तरंग मण्डप से जोड़ देती हैं, जो भी गुम्बजदार छत से प्राच्छादित है और इसके १ अखिलभारतीय जैन पञ्चतीर्थो में शत्रु ञ्जय, गिरनार, आबू, समेत शिखर और ऋषभदेव माने जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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