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प्रकरण - १८, नेमिनाथ का मन्दिर
[ ३९७ बेजोड़ है, क्योंकि यदि खाने-पीने की सामग्री का पूरा प्रबन्ध हो और पानी की बहुतायत हो तो माता और गोरखनाथ के शिखरों से सुरक्षित इस दुर्ग पर कोई भी शत्रु अधिकार नहीं कर सकता । परन्तु, मैं अपने पाठकों को इन मन्दिरों में एक-एक में होकर ले चलूंगा जिनकी अद्भुत स्थिति का सही अनुमान नीचे दिए हुए खाके से लगाया जा सकता है ।
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'महामाया' के शिखर से उतरते हुए, जिसके प्रति अद्वैतवादी जैनों को भक्ति विभिन्न प्रकार से अभिव्यक्त हुई है, पाठकों को मार्ग में ऊँची-ऊँची जगहों पर स्तम्भ-समह पर आधारित छतरियाँ देखने को मिलेंगी, जिनसे सामान्य दृश्य के सौन्दर्य में जो अभिवृद्धि होती है उसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। बेला अथवा अन्य प्रीतिकर पुष्पों का चयन करती हुई स्त्रियां भी पाठकों के दृष्टिपथ की अतिथि होंगी जो पुष्पमालाएं गूंथ कर गिरनार के देवताओं पर चढ़ाने के लिए उन्हें यात्रियों को बेचा करती हैं।
प्रवेश-द्वार के पास ही दिगम्बरों का बनवाया हुआ नेमिनाथ का पहला मन्दिर है, जो चौबीस जिनेश्वरों में से एक मात्र उनके लिये प्राराध्य हैं। जो लोग इस धर्म के विषय में अनभिज्ञ हैं उनकी जानकारी के लिए मैं बताएं कि जैन लोग दो बड़े विभागों में बँटे हुए हैं अर्थात् दिगम्बर और श्वेताम्बर; प्रथम मत के वे लोग हैं जो समस्त प्रावरण को उतार कर दिक् अथवा आकाश को ही अपना अम्बर या वस्त्र मानते हैं। इसके विपरीत, श्वेताम्बर वे हैं जो 'पवित्र' (श्वेत) वस्त्र के साथ एकाकार हैं । पूर्वमत के प्रवर्तक सिद्धसेन
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