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पश्चिमी भारत की यात्रा करता हुआ बैठा रहा। सदा ही बुद्धिरूपी दैवी गुण के अभाव में कुछ ऐसा भयानकसा भाव, जो हमारी प्रकृति में अन्तनिहित रहता है, प्रबल हो उठता है और हम तत्काल किसी ऐसे पदार्थ के चिन्तन में लग जाते हैं कि जिससे सर्वशक्तिमान् परमात्मा ने हमारे बौद्धिक भाव का मुख प्रावृत कर दिया है। परन्तु, यहाँ प्रत्यक्ष रूप से एक पागल और राक्षसतुल्य मनुष्य के विचार से बच निकलने का कोई उपाय नहीं था क्योंकि मैं मैदान से तीन या चार हजार फीट की ऊँचाई पर पर्वत-शिखर पर बैठा हुआ था। मेरे मन में पहले ऐसा विचार कभी नहीं आया था और उस समय मूल रूप से मुझे प्रकृति के उस पतित मानव के प्रति दुखःपूर्ण उत्तेजना एवं गहरी करुणा के भावों की अनुभूति हो रही थी।
धूप तेज होने लगी थी और साथ ही मुझे ध्यान दिला रही थी कि अभी और भी बहुत सी चीजें देखनी थीं; परन्तु, ऐसा दृश्य देखने के बाद मन पर जो कैंपा देने वाला प्रभाव पड़ा, उसका प्रतिरोध करना भी सरल नहीं था। मुझे उन मनुष्यों पर दया पाती है जिन्हें कभी ऐसी अछेड़ विचारमग्नता की विलासमयी तन्द्रा का अनुभव नहीं हुआ जैसी अभी थोड़ी देर के लिए मेरी समस्त चेतनाओं पर छा गई थी। खांसी, खरखरी और जाते हुए थके यात्री के सोच ने मेरे स्नायुजाल पर चोट की थी। मुझे अपने एकान्त से ईर्ष्या हुई और ऐसा लगा मानो दूसरे लोगों की उपस्थिति एक प्रकार की बाधा थी। परन्तु, सभी स्थितियों का अन्त अवश्य होता है इसलिए अपने कदम वापस बढ़ाता हुआ अन्त में में पुनः अपेक्षाकृत अधिक सौन्दर्य और रामणीयकता की मूर्ति 'अम्बा-भवानी' के मन्दिर में जा पहुंचा। ___ मण्डप के नीचे वेदी पर विराजमान माता के दर्शन कर के मैं पश्चिमी झरोखे में आ गया और वहाँ एक बड़े-से काले पत्थर पर बैठ कर नीचे की ओर खंगार के महलों के आसपास बने हुए मन्दिरों के समूह को निहारने लगा। जनों के इन स्मारकों का विहंगम-दृश्य बहुत गौरवपूर्ण एवं इनकी प्रायोजना और विभाजन का सही-सही परिचय देने वाला है। ये सब मन्दिर पर्वत के पश्चिमी मुकुटाकार शिखर के छोर पर अर्ध-चन्द्राकार बनाते हुए खड़े हैं जिसके अन्तिम किनारे पर ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी के पास एक हजार फीट ऊंची दीवार बनी हुई है, जो अपनी आधारभूत काले पत्थर की चट्टान के ही अनुरूप है । दक्षिणी किनारा खंगार के महलों से, जिसके परकोटे की दृढ़ दीवारें तथा उनकी सुरक्षार्थ काले पत्थर की पूठियों से विशाल चौकोर बनी हुई बुर्जे हैं, सुरक्षित है, और, वास्तव में ये महल ही इस पवित्र दुर्ग का प्रवेश-द्वार हैं, जो स्वयं दुर्गा का समुचित आवास है। किलेबन्दी को देखते हुए गिरिराज
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