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प्रकरण - १८; अघोरी
[ ३६५ वह मानवता के पतन में निम्न कोटि को प्राप्त हो चुका था। उसकी आँखें जल रही थी और वह नशे में लगभग मूछित-सा हुआ जा रहा था, फिर भी ऐसा लगता था कि जो क्रियायें उसने प्रारम्भ की थीं उनका उसे पूरा-पूरा ध्यान था। सिद्ध गोरखनाथ के छोटे-से मन्दिर के सामने बैठते ही उसने अपनी आँखें बन्द कर ली और थोड़ी देर निश्चल समाधि अवस्था में रहा । थोड़े ही क्षणों बाद उसमें किसी आत्मा के आवेश के लक्षण दिखाई देने लगे, जो उसके मुख की मांस-पेशियों में स्फुरण, शरीर की ऐंठन और गर्दन एवं हृदय की हलचल से प्रकट हो रहे थे मानो जिस मासुरी माया का वह उपासक था वही उसमें प्राविष्ट हो चुकी थी। जब यह दौरा समाप्त हुआ तो वह खड़ा हुआ और 'अलख, अलख' चिल्लाता हुआ विविध प्रकार की मुद्राओं में अपने आपको ढालने लगा। उसे छेड़ने से पहले मैंने इस चिल्लाहट को शान्त हो जाने दिया क्योंकि मुझे देखने और समझने के लिए उसके मस्तिष्क की आँख अत्यन्त धूमिल पड़ चुकी थी; परन्तु, उससे एक भी शब्द निकलवाने के मेरे प्रयत्न व्यर्थ ही गये। मैंने जो कुछ कहा वह उसने सुना और मुस्कराया भी, परन्तु मेरी उपस्थिति के विषय में चेतना का जो चिह्न उसमें दिखाई दिया वह केवल यह मुस्कुराहट मात्र थी। वह एक झोला लिए था; स्पष्ट है कि उसमें खाने पीने का सामान होगा; उसके पास एक नारियल का हुक्का भी था-नशीली चीजों का दम लगाने के लिए, और एक लोहे का चिमटा जिससे वह आग का उपयोग करता होगा । परन्तु, जिस वस्तु से मुझे अत्यन्त प्राश्चर्य हुआ वह थी एक बांस की बांसुरी, जो वह हाथ में लिए था। 'मधुर स्वर-संगम' का ऐसे प्राणी पर क्या प्रभाव पड़ता होगा जिसने प्रत्यक्ष रूप से मानवता के प्रत्येक चिह्न का परित्याग कर दिया था ? उसकी अभेद्य चुप्पी के कारण में इस विषय में उससे कोई निश्चित उत्तर प्राप्त न कर सका । गोरखनाथ को अन्तिम प्रणाम करके 'मलख' शब्द का उच्चारण करता हुमा वह विदा हुआ और शिखर से उतर कर निषिद्ध कालिका मन्दिर की ओर चल दिया तथा मार्गावरोधक पदार्थों में मेरी दृष्टि से अोझल हो गया। मेरा यह पूछना व्यर्थ ही हुआ कि वह कौन था; केवल इतना ही पर्याप्त था कि वह किसी से बातचीत नहीं करता था और उसे देखने वाले लोगों का मत था कि वह साधारण मनुष्यों से बढ़कर था। मैं नहीं कह सकता कि वह मर्दखोर था या नहीं, परन्तु वह सीधा अघोरीशिखर की ओर गया था, जहाँ बहुत करके उसी के पन्थ के लोग रहते हैं, इसलिए सम्भव है वह भी उसी बिरादरी का हो ।
मैं थोड़ी देर तक सिद्ध के चबूतरे पर इस समागम की अपूर्वता पर विचार
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