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पश्चिमी भारत की यात्रा वहाँ तीन या चार आदमी ऐसे थे जो अक्षरशः जंगली पशुओं का सा जीवन बिताते थे और वे नेबूचॅड्नेजर (Ncbuchadnezzar)' की कहानी का विश्वास दिलाते थे; अन्तर केवल इतना ही था कि वे कच्चा और मनुष्य का मांस भी खाजाते थे। मरा खयाल है, सन् १८०८ में, इन राक्षसों में से एक बड़ौदा में पाया था जो प्रत्यक्ष ही एक मरे हुए बच्चे का हाथ खा गया । एक दूसरा राक्षस १८११ ई० में काठियावाड़ के सिरसोहो (Sirsohoh) में आया था, परन्तु उसके रहने से नुकसान नहीं हुआ, यद्यपि लोगों ने उसे दुशालों आदि से ढंक दिया था। एक बार एक अघोरी गिरनार की यात्रा के अवसर पर पहाड़ पर पाया और यात्रियों में शामिल हो गया; उन लोगों ने उसकी पूजा की, दुशाले, पगड़ियाँ और अंगूठियाँ आदि भेंट की। वह कुछ देर बैठा रहा, फिर एक मूर्खतापूर्ण हँसी के साथ उछल पड़ा और जंगल में भाग गया।' मुझे बताया गया कि कुछ ही मास पूर्व, एक कमबखत अपनी गुफा से निकल आया और उसने एक ब्राह्मण के लड़के को, जो मन्दिर से थोड़ी दूर निकल गया था, पत्थर मार कर गिरा लिया; परन्तु, उसकी टाँग ही टूट कर रह गई और बच्चे की चिल्लाहट सुन कर किसी ने आकर उसे बचा लिया। अघोरी अपने शिकार के लिए लड़ा परन्तु उसे पीटपीट कर बेदम कर दिया गया और मरा हुआ समझ कर वहीं छोड़ दिया गया। तब से वे लोग पास-पास और सचेत रहने लगे और कहते हैं कि वह अपराधी गिरनार का जंगल छोड़ कर कहीं चला गया।
पाठकों को याद होगा कि, मैं जब इन विवरणों में भटक गया तो उन्होंने मुझे गिरनार शिखर पर अकेला छोड़ दिया था, जहाँ से मैं इन अभिशप्त मानवमूर्तियों को 'महामाता' के मन्दिर को ओर चुपचोप देख रहा था और उन विचारों के तानेबाने में उलझा हुआ था, जिनको मेरी इस एकान्त स्थिति ने जन्म दे दिया था। मेरा एकान्त एक प्राणी के कारण भंग हुआ जिसके माने की मुझे खबर भी नहीं हुई कि कब वह चुपचाप पाकर गोरखनाथ के मन्दिर के सामने बैठ गया। एक फटे कपड़े का चिथड़ा ही उसके शरीर को ढंके हए था, बालों के बने हुए रस्से से उसकी कमर कसी हुई थी और उसका समस्त शरीर एवं उलझे हुए बाल राख से सने हुए थे। उसके अंग सुगठित थे, प्राकृति सुन्दर और पौरुषयुक्त थी, परन्तु बाईस वर्ष से अधिक अवस्था न होते हुए भी
' बेबीलोनिया में तीन बादशाह इस नाम के हुए हैं| Nebuchadnezzar II ने ६०४-५६१ ई.पू. तक राज्य किया। उसने जरुसलम पर भी ५८६ ई.पू. में अधिकार कर लिया था।
(N. S. E., p. 922)
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