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________________ प्रकरण १८ लेखक के विचार; गोरखनाथ की चोटी पर चढ़ाई; गिरनार के अन्य शिखर; मुसलिम सन्त; कालिका के मन्दिर की कथा; अघोरी; एक धनवासी योगी; मन्दिर जैनों के गच्छ। देवालयों का वर्णन; शिलालेख ; नेमि(नाथ) का मन्दिर नेमि और मेम्नान की प्रतिमानों में साम्य; खंगार-वंश; महल के खण्डहरों में एक रात; पर्वत की ढाल ; नेमिनाथ मंदिर के यात्रा; वृद्धा यात्रिणी; हाथी चट्टान; डेरे पर वापसी। सभी युगों में भक्तों ने जगत्स्रष्टा परमात्मा का भजन और चिन्तन करने के लिए पर्वत-शिखरों पर ही पाश्रय लिया है और जब इस संसार के झंझटभरे पदार्थों से मन ऊपर उठ जाता है तो वह अवश्य ही ऐसे साँचे में ढल जाता है कि फिर उस (परमात्मा) को सर्वशक्तिमत्ता की प्रत्ययभावना का विस्तार उसके द्वारा निर्मित सांसारिक वस्तुओं के आधार तक ही सीमित नहीं रहता। यदि चिंतन कभी मायासित होता है तो वह ऐसे ही स्थानों में -जैसे कि मैं इन प्राचीनकाल के एकान्त खण्डहरों में बैठा हूँ जहाँ को गहरी चुपचापो को केवल चील की आवाज़ अथवा सूने मकानों में घुरघुराती हुई वा ही भंग करती है; और यहाँ मुझे मनुष्य और उसकी प्रवृत्तियों पर दया आ रही थी। कहीं दूर, दूर पर अस्तोन्मुख सूर्य की किरणों से किञ्चित् पालोकित समुद्र का दृश्य भी ऐसी भावराशिको जगाने में पीछे नहीं रह रहा था जिसमें पीड़ा और प्रसन्नता दोनों ही प्रापस में गुंथी हुई थीं, यह वह समुद्र है जिसके माध्यम से बाईस वर्ष पहले मैं घर से यहाँ पाया था और अब एक बार फिर उसी मार्ग से उधर लौटने वाला हैं। ऐसे क्षणों में और ऐसे दृश्यों में मस्तिष्क जीवन के कार्यकलापों का क्रमशः सिंहावलोकन कर गया; और, यह तो आप जानते ही हैं कि जिसका कार्यकाल विचित्रताओं से भरा रहा हो तो क्या उसको संवेदनाएं विविधरूपता से रीती रही होगी? मेरे विदेश-वास की अवधि समाप्त हो चुकी थी; में जहाँ से रवाना हुमा था वहीं लौटने वाला था और मुझे उस क्षण की स्पष्ट याद हो आई जब कि मैंने अपने देश और मित्रों से खुशी-खुशी विदा ली थी-'जीवन के जादू भरे प्याले' के 'चमकते हुए लबालब भरे किनारे' का स्वाद लेने के लिए; और तब मैंने केवल उन दिनों का हिसाब लगाया जो मेरे स्वतंत्र रूप से कार्यक्षेत्र में उतरने के समय के बीच में थे और भाग्य से इस कार्यवृत्त का अर्ष-व्यास छोटा नहीं था। भारत के उत्तर में फैले हुए हिमाच्छादित पर्वतों से गंगा, ब्रह्मपुत्रा और सिन्धु के मुहानों तक मुझे बहुत से मनुष्यों, उनके व्यवसायों और विभिन्न बस्तियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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