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पश्चिमी भारत की यात्रा
का अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिला था; मैंने बहुत से मित्र बनाए; उनमें से बहुत-से मौत के मुँह में समा गए मेरे मार्ग में बहुत-सी अच्छाइयाँ और बुराइयाँ भी आईं, बहुत-सी बातों का मुझे पछतावा है और उनसे भी अधिक संख्या में चिरस्मरणीय प्रसंग हैं; दुःख और निराशा के काले धब्बों के पलड़ों को आशा और आनन्द-भरे दृश्यों ने बराबर किया; सचमुच, में अब भी इस देश से चिपका हुआ ही था और शायद पूर्वस्मृतियों के कारण इस पवित्र भूमि को सदा के लिए छोड़ने का मन नहीं हो रहा था; स्वजनों और स्वदेश की आशाएं मेरे सामने अस्पष्ट थीं क्योंकि जिन लोगों के साथ जीवन के अत्यन्त आनन्दमय दिन बीते थे उनको छोड़ते हुए शोक का आवेग मुझ पर छाया हुआ था ।
सूरज उगते ही मैंने इन्द्रवाहन अथवा स्वर्ग- शकटी में बैठ कर पुनः चढ़ाई शुरू कर दी और जब मैं जगन्माता अम्बा भवानी के मन्दिर में पहुँचा तो पर्वत की ऊपरी श्रेणी को सूर्य आलोकित कर चुका था । यहाँ मैं केवल इस चोटी की ऊँचाई देखने के लिए ही ठहरा श्रौर फिर गोरखनाथ के शिखर की ओर आगे बढ़ा। यद्यपि हम लोग इतनी ऊँचाई पर थे परन्तु हवा वन्द थी। सूरज बादलों में ही उगा था और जब वह दो घंटे ऊपर आ गया तो भी थर्मामीटर अपने आरम्भ के अंक ६६° से केवल एक ही डिगरी आगे बढ़ा था । गोरखनाथ के शिखर पर पहुँचने के लिए मुझे काफी नीचे उतरना पड़ा तथा बीच की एक चढ़ाई भी तय करनी पड़ी; यहाँ पहुँचने पर रास्ता इतना ढालू था कि मैं इन्द्रवाहन छोड़ने को विवश हुआ तथा यात्री के सहज उत्साह के साथ चारों ओर से खड़ी चढ़ाई पर जैसे-तैसे चढ़ गया। शिखर पर पहुँच कर मैं एक चबूतरे पर श्राया जिसका व्यास दस फोट से अधिक नहीं था और जिसके बीचोंबीच एक समूचे पत्थर का छोटा-सा गोरखनाथ का मन्दिर बना हुआ था। यह सुन्दर शिखर एक तराशे हुए शंकु के आकार का है जो अपने आधार से लगभग दो सौ फीट और 'अम्बा भवानी' के शिखर की तलहटी से डेढ़ सौ फीट अधिक ऊँचा है । गिरिराज के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच कर मुझे सन्तोष हुआ और छोटे-से मन्दिर में विराजमान सिद्ध पादुकाओं के पास बैठ कर मैं उन शिखरों की झाँकी लेने लगा जिन पर अपने बे-मौके के लंगड़ेपन के कारण मैं नहीं पहुँच सकता था । यद्यपि मौसम अनुकूल न होने के कारण दूर की वस्तुएँ साफ दिखाई नहीं देती थीं, परन्तु दृश्य बहुत ही गौरवपूर्ण था। मुझे आशा तो थी, परन्तु मैं यहाँ से शत्रुञ्जय की छवि नहीं देख सका; फिर भी, समुद्र की सतह पर सूर्य का प्रकाश पड़ रहा था और यद्यपि तट पर बसे हुए नगर अच्छी तरह पहचान में
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