SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा पिडगियाँ (आधार) शुद्ध सादे हैं । स्तम्भों के प्रत्येक युग्म पर भारो-भारी मध्यपट्ट मिठोठ] रखे हुए हैं जिन पर सीधी छत टिकी हुई है। मध्य की छतरी के चारों ओर प्रत्येक दो खम्भों को एक नोकदार मेहराब से जोड़ा गया है जिससे निर्माण के भारी स्वरूप को बहुत कुछ सहारा मिल जाता है। उत्तर को ओर (और यदि मेरी टिप्पणी गलत नहीं है तो शायद पश्चिम की ओर भी) काम पूरा हो चुका है। दूसरे भाग खुले पड़े हैं और नुकीली मेहराबें दो दो खम्भों पर खड़ी हैं । एक तकिया अथवा पाड़ा पर्दा, जो रंग-बिरंगे एक ही संगमर्मर पत्थर का बना हुआ है और अट्ठारह फीट लम्बा तथा दस फीट चौड़ा होगा, बहुत बढ़िया कारीगरी का नमूना है। बहुत से ऐसे कारण हैं जिनसे यह विश्वास हो जाता है कि यह इमारत अन्य मन्दिरों के मलबे से ही बनवाई गई है। मुख्यत: इन खम्भों और पवित्र पर्वत पर कुछ अर्द्धभग्न मन्दिरों के बचे-खुचे खम्भों की माप एवं प्राकृति समान है। कुमारपाल के मन्दिर का भव्य मण्डप पूर्णतया उतार लिया गया है और इसी प्रकार नेमिनाथ का भी-इनकी माप मसजिद की मनोनीत गुम्बजों के ठीक बराबर है । पर्वतस्थित सोमप्रीत राजा [सम्प्रतिराज की छतरी, जिसका व्यास भी इतना ही है, निस्सन्देह, तीसरी गुम्बज़ के लिए निर्धारित रही होगी। परन्तु, मृत्यु के कारण निर्माता के मनसूबे पूरे न हो सके, अथवा विद्रोह के कारण इसका पूरा पूरा पता नहीं चलता । अत एव ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व हुए इस जनमत के प्रधान अनुयायी का यह स्मारक ग्रयानिट पत्थर को नींव पर उसी पत्थर का बना हुआ अब भी यथावत् खड़ा है। ___ हाँ, यादवों का एक अमर स्मारक यहाँ पर और है-वह है एक सरोवर, जो ठोस चट्टान में खोद कर बनाया गया है और गहराई में एक सौ बोस फीट से कम नहीं है। इसकी प्राकृति वृत्ताकार है (जो क्रमश: नीचे की ओर छोटी होती चली गयी है); इसका सब से बड़ा व्यास पचहत्तर फीट के लगभग है। चट्टान के पत्थर पर राजगीरी [चूने] का काम है। इस दुर्ग के एक और प्रबल रक्षोपकरण को हम नहीं भुला सकते; वह है पीतल की एक विशाल तोप जो पश्चिम की ओर निकले हुए खुले चबूतरे पर रखी हुई है। इसकी लम्बाई बाईस फीट, जोड़ पर व्यास दो फीट दो इञ्च, मुखभाग पर उन्नीस इञ्च और मुखछिद्र पर सवा दस इञ्च है। इस पर दो लेख उत्कीर्ण हैं जिनसे पता चलता है कि यह टर्की में ढाली गई थी। इसमें सन्देह नहीं कि यह सुलेमान (Solomon) महान् के काफिले के साथ यहाँ पाई थी, जिसने पन्द्रहवीं शताब्दी में देव (Diu) द्वीप पर अाक्रमण कर के गुजरात के राजा के मुकुट के रत्न प्राप्त कर लिए थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy