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प्रकरण - १७; जूनागढ़
[ ३७७ सोपान-सरणि द्वारा किले की उस खुली रविश पर गए जहाँ तोपें रखी जाती थीं। इस दुर्ग के भीतरी भाग में कैसी भी शानदार इमारतें रही हों परन्तु हिन्दुओं द्वारा बनवाई हुई एक भी इमारत अब नहीं बची है । एक विशाल भवन ने किले की मुंडेर को हड़प लिया. है-यह है एक विशाल मसजिद, जिसका निर्माण काफ़िर राजपूत पर इसलाम की विजय को चिर-स्मृत करने के लिए (भग्न) मन्दिरों और यादवों के महलों के मसाले से किया गया है । इसका श्रेय राजा माण्डलिक की पराजय पर सुलतान मोहम्मद बेगचा (महमूद बेगड़ा) को दिया जाता है । एक के बाद एक आने वाला प्रत्येक विजेता केवल एक ही समान लक्ष्य से प्रेरित हुआ जान पड़ता है और वह यह है कि जितने अधिक मन्दिरों को 'सच्चे ईमान' [इसलाम] के नाम पर कुर्बान किया जायगा उतना ही अधिक ऐहिक यश और पारमार्थिक श्रेय उसे प्राप्त होगा। परन्तु यहाँ भी, जहाँ तक ईमान का सम्बन्ध है, उनकी करारी हार हुई है, क्योंकि मकबरा हो, मसजिद हो या ईदगाह हो-वे बेमेल विशाल ढेर, विधान में मुसलिम होते हुए भी उनके प्रत्येक अवयव और सामग्री के विचार से तो हिन्दू ही हैं। बेमेल कहने से मेरा तात्पर्य यह नहीं है कि इस इमारत को या इसके निर्माता को इस कलाकृति का समुचित श्रेय देना में अस्वीकार करता है, क्योंकि इसकी बना. वट विलक्षण है और शिल्पी ने इसके निर्माण में एक ऐसी कृति उपस्थित कर दी है कि जिसकी एकरूपता, विस्तार, दृढ़ता और स्वाभाविकता को देखते हुए इसे गौरवपूर्ण का विशेषण देना समुचित ही होगा। जब मैं यह कहै कि इसकी लम्बाई एक सौ चालीस फीट और चौड़ाई एक सौ फीट है, इसके ढंके हुए और खले दालान ग्यानिट पत्थर के बने हुए गोल और चोकोर दो सौ स्तम्भों पर आधारित हैं तो पाठक स्वीकार करेंगे कि फैलाव के विचार से मेरे द्वारा दिया हुआ उक्त विशेषण अनुपयुक्त नहीं है। इसके तीन विभाग हैं, एक मध्य का और दो पावों में । मध्य भाग में तीन अष्टकोण हैं। इनमें से प्रत्येक की लम्बाई तीस फीट है और हर एक चारों ओर खम्भों से घिरा हमा है । खम्भों का आपस में अन्तर आठ-पाठ फीट का है। ऐसा ज्ञात होता है कि सामान्य हिन्दू-पद्धति के अनुसार इनको गुम्बजों से आच्छादित करने की योजना थी क्योंकि तीस-तीस फीट ऊँचे ग्यानिट के गोल अस्थायी खम्भे अब भी खड़े हैं; इनमें से प्रत्येक स्तम्भ नाप-जोख के हिसाब से तीन बराबर के भागों में विभक्त है और ये छतरी का काम पूरा होने तक उसको साधे रहने के लिए बीच-बीच में खड़े किए गए थे। पार्श्व-भाग के स्तम्भ चौकोर हैं । ये भी सब प्रयानिट के ही बने हुए हैं, प्रत्येक की ऊंचाई लगभग सोलह फीट है और इनके शोर्ष तथा
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