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प्रकरण - १७; उनियाला, जूनागढ़
[ ३७१ किनारे पर बसा हुआ है, जो उधर ऊपर की पहाड़ियों से निकलता है। आज की सुबह की यात्रा में मनुष्यों की दशा प्रायः ठीक नहीं रही; रास्ते के गांव छोटे-छोटे, दरिद्र और बे-चिराग से हैं; खेतीबाड़ी भी विरल और उपेक्षित सी ही दिखाई दी। मालिया में मुख्यतः बनियों और रैबारियों की बस्ती है। दूसरा गाँव, जिसमें होकर हम निकले, काठियों और हाथियों का है, परन्तु वहाँ बहुत से राजपूत भी थे, जिनकी जाति मेरे लिए सर्वथा नई थी; वे 'करिया' राजपूत थे और अपना निकास परमारों से बताते थे-कुछ कोली-परिवार भी इन लोगों में हिल-मिल गए थे।
उनियाला अथवा उनियारा-दिसम्बर ६ठी-नौ कोस । हमारा मार्ग लगातार चढ़ाई और एक फैले हुए मैदान में होकर था। मंजिल की समाप्ति के निकट ही शेरगढ़ की प्राकारयुक्त चौकी थी, जहाँ से समुद्रतट-स्थित माँगरोल नगर साफ दिखाई देता था। ऊनियारा से 'ऊन' अर्थात 'गर्मी के घर का तात्पर्य है; यह नाम, मैं समझता हूँ, इसकी दक्षिणी और असुरक्षित स्थिति का परिचायक है । यहाँ के निवासी मुख्यतः मुसलिम और लोबाना (Lobana) जाति के बनिए हैं, जिनका उद्गम भाटी राजपूतों से है और जो सिन्ध की घाटी में बहुत मिलते हैं।
जूनागढ़-दिसम्बर ७वीं-नौ कोस । आज सुबह की मंज़िल में, जो लगभग अद्वारह मील की थी, हमें बहुत थोड़े गाँव मिले। ये सभी दूर-दूर जंगलों और झाड़ियों के बीच में थे। सच बात तो यह है कि 'उणियारा से जूनागढ़ तक सब उजाड़ ही उजाड़ पड़ा है', फिर भी, इसमें कोई अरोचक बात नहीं थी क्योंकि प्रत्येक कदम पर हम उस पवित्र पर्वत के समीप पहँच रहे थे जो हमारी यात्रा का महान् लक्ष्य था। गाँवों में मुख्यतः अहीर लोग बसे हुए थे जो बस्ती के प्रासपास छुट-पुट खेतो भी कर लेते थे; परन्तु, यहाँ की हर चीज यह बता रही थो कि मानव का अत्याचार ही विकास में बाधक बन बैठा था और यहाँ तो लोगों को तो, दोनों ही, धार्मिक एवं राजनैतिक विपरीतताओं को सहन करना पड़ता था क्योंकि यहाँ का सूबेदार मुसलमान था। ___ जूनागढ़ का अतीत समय की धुन्ध में खो गया था; परम्परागत कथाएँ और वर्तमान इतिहासज्ञ यही कहते हैं कि यह 'बहुत जूना' है और वास्तव में इसकी स्थापना की कोई तिथि ज्ञात न होने के कारण बहुत पहले से ही इसको 'पुराना किला' अर्थात् जूनागढ़ कहते आये हैं। उपलब्ध पुराने लेखों से ज्ञात होता है कि यह यादव-शाखा के राजाओं की राजधानी रहा है । जब मेवाड़ के राणा के पूर्वज वलभी के सर्वसत्ता-सम्पन्न स्वामी थे तब भी ऐसा ही कहा जाता था और
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