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________________ ३७० ] पश्चिमी भारत की यात्रा ___ चौरवाड़ काफी बड़ा है, जिसमें लगभग पन्द्रह सौ घर होंगे, यद्यपि इनको पूरी तरह प्राबाद नहीं कहा जा सकता। जातियाँ बनिये और मुसलमानों की हैं, परन्तु मुख्यतः यहाँ पर पशु-पालक अहीर और एक और जाति के लोग हैं, जिसके विषय में मैंने पहले कभी नहीं सुना । इस जाति का नाम हाथी (Hathi) है; ये लोग सूरत-शकल और व्यवसाय में अहीरों के समान हैं और प्रायः मध्य सौराष्ट्र के बहुत से भागों में बसे हुए हैं। इस एकाकी और अपराध-वृत्तिरहित जाति के विषय में मैंने अन्यत्र विवरण लिखा है, जो प्राचीन समय में कभी विशिष्ट रही है और अब भी इन लोगों में 'पल्लि' जाति के अवशेष होने के सभी चिह्न पाये जाते हैं। मध्यभारत में एक विशाल भू-भाग इन्हीं के नाम पर अहीरवाड़ा कहलाता है, जो उस क्षेत्र के बीचों-बीच है, जहाँ प्रत्येक वस्तु, जैसे, नगर आदि के नाम के अन्त में 'पाल' जुड़ा रहता है और जहाँ राजाओं का एक लम्बा वंश चला था, जिनकी राजधानी भेलसा, भोपाल आदि नगर थे, जहां प्राचीन बौद्ध वास्तुकला के कुछ उत्तम अवशेष और शिलालेख उस भाषा में मिलते हैं, जो 'पालो' कहलाती है। इन सभी बातों से ज्ञात होता है कि इस पशुपालक जाति की परम्पराएं उस अभिप्राय को सिद्ध करती हैं, जो दिनोंदिन जोर पकड़ता जाता है और जिसका सूत्रपात मैंने ही किया था, कि इस जाति का मूल निवास भारत में नहीं था।' अकबर के राज्य में अहीरों का सौराष्ट्र प्रायद्वीप में राजनैतिक महत्त्व था; अबुलफ़जल कहता है कि "डूंडी नदी के किनारे इन लोगों का एक उपजिला था, जो स्थानीय भाषा में 'पुरञ्ज' कहलाता था। यहां तीन हजार घुड़सवारों और इतने ही पैदलों की सेना थी, जो जाम (जाड़ेचा) की जाति से सदा विद्रोह करती रहती थी। इस बुद्धिमान् विश्व-विवरण-लेखक ने काठियों को अहीरों की ही एक शाखा मान लिया है, परन्तु साथ ही यह भ्रान्तिपूर्ण अभिप्राय भी प्रकट किया है कि 'कुछ लोग इस शाखा को मूलत: अरबी मानते हैं'- यह भूल सम्भवतः इन लोगों की विशिष्ट अश्व-प्रियता के कारण उत्पन्न हुई मालूम होती है। निस्सन्देह, यह हो सकता है कि ब्राह्मणों, पण्डों और पुजारियों की कट्टरता से तंग आकर, लूट-पाट और पशु-पालन-व्यवसाय के कारण अहीरों के रंग-ढंग और रहन-सहन स्वतंत्रतापूर्वक काठियों से मिल गए हों। मालिया (Mallia) दिसम्बर ५वीं-सात कोस । यह स्थान बहुत प्राचीन है, परन्तु इसके बहुत थोड़े ही अवशेष उपलब्ध हैं। यह एक सुन्दर झरने के 'बाद की शोध में ग्रन्थकर्ता के इनमें से अधिकांश अनुमान भ्रान्तिपूर्ण सिद्ध हो गए हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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