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________________ प्रकरण-१७; लुकागच्छोय यति [ ३६६ रूप) सरकार एक स्वतंत्र प्रदेश था;' यहाँ का स्वामी गहलोत-शाखा का था और उसके अधिकार में पचास हजार घुड़सवार तथा एक लाख पैदल थे।' यह स्मरणीय है कि मेवाड़ में संस्थापित हो जाने के बाद तक इस जाति का परम आराध्य देव सूर्य ही था और अब भी, उस समय जितना तो नहीं, परन्तु मुख्य देवता के रूप में उसकी मान्यता अवश्य है । मैं अपनी इस खोज के लिए लुकागच्छ के एक जैन यति के प्रति आभारी हूँ, जो विनम्र, अप्रभावित, विद्वान् और प्रायद्वीप में अपने धर्म से सम्बद्ध मन्दिरों के विषय में पर्याप्त और प्रत्येक जानकारी रखने वाला था। उसने केवल प्रानन्द और ज्ञानवृद्धि के लिए ही बहत सी यात्राएं की थीं और यद्यपि पहले किसी-किसी फिरंगी से उसका वास्ता नहीं पड़ा था, फिर भी मैंने देखा कि उसमें किसी प्रकार की झिझक नहीं थी और वह अच्छा वक्ता भी था। लंका-लोग ईश्वरवादी हैं; वे केवल 'एक' को मानते हैं और 'कलापूर्ण निर्मित मन्दिरों' में विश्वास नहीं करते, न कभी उनमें प्रवेश ही करते हैं। वे पर्वत-शिखरों और एकान्त जङ्गलों को ही उपासना के लिए अधिक उपयुक्त स्थान समझते हैं। वे चौबीस तीर्थङ्करों के उपदिशों की प्रशंसा करते हैं और उनको अति-मानव मानते हैं जिनकी शुद्धता और जीवन की पवित्रता के कारण देवी कृपा के प्रसादरूप में उनको मोक्ष प्राप्त हुई । अतएव वे उन्हें पूज्य और मध्यस्थ (मोक्ष-प्राप्ति में सहायक) मानते हैं, आराध्य नहीं। मेरे नवीन मित्र ने 'पवित्र पर्वत' तक मेरे साथ यात्रा करना और मेरी शोध में सहायता करना स्वीकार कर लिया है। प्रसन्नता है कि मेरे गुरु 'ज्ञान के चन्द्रमा' भी बड़े उत्साह से इस व्यक्ति से स्पर्धा करने को तत्पर हैं, जो उनके विशाल ज्ञानभण्डार में कुछ वृद्धि कर सकेगा। . सूबा गुजरात की सरकारों में सोरठ (काठियावाड़) सरकार भी सम्मिलित है, जिसमें १२ महाल (१३ बन्दरगाहों सहित) हैं। सरकार की प्राय ६३,४३,७६६ दाम है । --आईन-ए-अकबरी (अनु० एच० एस० जैरट) भाग २, पृ० २६३ २ वास्तव में ये अनीश्वरवादी हैं । इस गच्छ का संस्थापक अहमदाबाद निवासी लौंका या लुंपाक नामक लेखक था । लेख में चूक रहने के कारण ज्ञानजी यति द्वारा तिरस्कृत हो कर उसने लींबड़ी निवासी राज्याधिकारी लखमसी बनिए के सहयोग से अपना मत वि० १५२४ में चलाया । ये लोग ४५ पागम छोड़ कर केवल १२ सूत्र मानते हैं और प्रतिमापूजन प्रादि में विश्वास नहीं करते। १५३३ वि० में भाण ऋषि ने इसे अंगीकार किया और नागोरी, गुजराती व उत्तरी नाम से तीन गद्दियां कायम हुई। -रत्नसागर, (जैन इतिहास) भाग ५, पृ० १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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