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पश्चिमी भारत की यात्रा
के 'मूर्ति - पूजकों' ने बहुत हानि पहुँचाई, जिनके लालच और क्रूरता को दशवीं शताब्दी में तातार और तेरहवीं में अल्ला (उद्दीन) की अध्यक्षता में अफगान लोग भी मात न कर सके थे । एक प्राचीन समुद्री यात्रा विवरण के संकलन में से कुछ उद्धरण पहले दे चुका हूँ, जो १५३२ ई० में नूना डा कुन्हा (Nuna da Cunha) और उसके योग्य सहायक एण्टोनियो डी सलाडान्हा (Antonio de Saladanha) के आचरण से सम्बद्ध है । वास्तव में वे लोग प्रमाण-पत्र प्राप्त समुद्री लुटेरे थे प्रोर तदनुकूल आचरण के योग्य प्रत्येक कार्य पूरा करते थे जैसा कि उन्हीं के बान्धव स्पेनवासियों ने रक्त के प्रक्षरों में उनको 'आधुनिक संसार के अभागे प्रादिवासी' लिखा है ।
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सोमनाथ के मन्दिर का मूर्ति-कक्ष
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