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________________ प्रकरण - १६, सोमनाथ पट्टण _ [ ३६५ हैं, यद्यपि है वह सम्भावना मात्र ही-वह यह है कि जिस शक्ति ने ७४६ ई० में चावड़ा-वंश के राजाओं को समुद्री लूटपाट के कारण दिउ अथवा देव-पट्टण से निष्कासित किया था और अणहिलवाड़ा की स्थापना की थी, वह प्राचीन लेखों के अनुसार वरुण न होकर खलीफा हारूं (की शक्ति) थो। बस, प्राचीन देव-पट्टण के विषय में इतना ही पर्याप्त है। वर्तमान नगर में लगभग नौ सौ घर हैं, जिनमें से दो सौ ब्राह्मणों के, चार सो मुसलमानों के, प्राय: इतने ही व्यापारी बनियों के तथा शेष सभी जाति के लोगों के हैं। यदि यह जनगणना ठीक है तो यहाँ की आबादी पाँच हजार के अन्दर-अन्दर होनी चाहिए। आसपास की दृश्यावली मनोरञ्जक है, जो प्राचीन वैभव से सम्बद्ध कितने ही उपकरणों से युक्त है-इनमें सुन्दर-सुन्दर जलाशयों की मुख्यता है जो यहाँ के निवासियों की सुविधा एवं विलाप के लिए बनाए गए थे। इनमें से पहला जलाशय उत्तरी द्वार से लगभग एक सौ गज की दूरी पर है । इसकी सम्पूर्ण परिधि अट्ठारह सौ गज है; आकृति में यह बहुकोण होने से वृत्ताकार के समान है। इसके चारों ओर ठोस अनघड़ पत्थरों की दीवार है और चारों ही तरफ से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उतरती हैं ; केवल गिने-चुने स्थानों पर जानवरों के लिए उतर कर पानी पीने के खुरे बने हुए हैं। इससे उत्तरपश्चिम में प्राधो मील की दूरी पर भलका और पद्म-कुण्ड हैं, जिनके विषय में पहले लिखा जा चुका है। हिन्दू-मान्यता के इन अत्यन्त प्राचीन चिह्नों की रोचकता इस बात से और भी बढ़ जाती है कि इनसे उन स्थानों का पता चलता है जहाँ उत्तर से आने वाली सेनाओं ने अड़े जमाए थे; जैसे कि उपरिवर्णित हस्तलेख में बताया गया है कि महमूद ने भलका-कुण्ड के पास डेरा डाला था। पट्टण के चारों ओर बनी हुई अनगिनती मजारें इसलाम के नाम पर हजारों की संख्या में शहीद होने वालों की साक्षी दे रही हैं। हिन्दुस्तान के बड़े से बड़े शहरों में भी इनसे अधिक कलें देखने को नहीं मिलती। समुद्री तट पर एक विशाल ईदगाह है। ऐसा मालूम होता है कि एक नामहीन इमारत ने संस्थापक के कीति मन्दिर को नींव भी बालू पर रख दी है। बेलावल अथवा अधिक शुद्ध रूप में 'वेलाकूल' पट्टण का बन्दरगाह है और अणहिलवाड़ा के अच्छे दिनों में जब 'हुरमुज' का नूरूद्दीन यहाँ के जहाजी बेड़े का अध्यक्ष था, कितने ही परिणामों के लिए अभिमान का स्थान रहा है। यह बेड़ा अब छिन्न-भिन्न होकर केवल एक दर्जन पट्टामार नावों तक ही रह गया है, जो साधारण समुद्र-तटीय व्यापार में काम आती हैं अथवा यात्रियों को मक्का तक पहुंचा देती हैं । इसो किनारे के अन्य नगरों को भाँति इस नगर को भी 'यूरोप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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