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________________ ३६४ ] पश्चिमी भारत को यात्रा हमारे इस प्रसंग से संबद्ध है। ऐतिहासिक लेख के रूप में मैं इसके महत्व पर सविस्तार विवेचन कर चुका हूँ। इससे हमको दो स्पष्ट नए संवतों का पता चलता है-एक वलभी संवत् का और दूसरा सिंह (Seehoh) संवत् का; प्रथम संवत् ३७५ विक्रमाब्द से चालू है और वलभी के सूर्यवंशी राजारों से सम्बद्ध होने के कारण बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक दूसरे शिलालेख (परि० सं. ४) की खोज से इसकी सन्तोषप्रद सम्पुष्टि हो जाती है। इसमें कुमारपाल के राज्यकाल को सामान्यतया विक्रम-संवत् में न लिख कर वलभी-संवत् ८५० + ३७५ = १२२५ वि. संवत् लिखा है जब कि उसका चमत्कारपूर्ण राज्यारोहण हुआ था। यह संवत् पुण्यकाल मानने योग्य है क्योंकि तभी अणहिलवाड़ा का राजदण्ड ग्रहण करने से पूर्व प्राई हुई समस्त आपदाओं से वह निस्तार पा सका था।' ___ इण्डो-गेटिक आक्रमणकारियों द्वारा वलभी के विध्वंस का वृत्तान्त मेवाड़ के पुरालेखों में मिलता है, जिनमें यह घटना संवत् ३०० में हुई बताई गई है। निश्चय ही यह मूल (वलभो) संवत् हो होगा। इस प्रकार ३०० + ३७५ == ६७५-५६ (विक्रम-संव. और ईसवीय सन् का अन्तर) ६१६ ई० का समय वलभी के नाश और लोहकोट में कनकसेन के वंश की समाप्ति के लिए निश्चित होता है । यह ठीक वही समय है जिसको Cosmas (कॉसमस) ने एब्टीटीलॉस (Abtetelos) अथवा सफेद हूणों के जीतों अथवा जीटों के समूहों के साथ हुए आक्रमण का माना है, जो बाद में सिंध-घाटी में मीनागर (Minagara) स्थान पर बस गए थे। यहां हम फिर कहेंगे कि यह उस जाति का दूसरा आक्रमण था; पहला अाक्रमण दूसरी शताब्दी में हुआ था जैसा कि 'पॅरिप्लुम' के कर्ता ने लिखा है और द' अॉनविले, गिबन और डी गुइग्नीस आदि ने भी उसी का अनुकरण किया है। ये जातियां अपने कुटुम्ब के कुटुम्ब सौराष्ट्र में छोड़ गई थीं, परन्तु हम उनसे यह आशा नहीं करते कि उन्होंने मन्दिरों को ध्वस्त किया होगा। इस प्रसंग का हिसाब बैठाने में एक अनुमान हम और भी लगा सकते १ यहां पर ग्रन्थकार संवत् के विषय में कुछ गड़बड़ी में उलझ गए जान पड़ते हैं जिसका निराकरण होना असंभव है । कुमारपाल के राज्यारोहण का समय ११८६ वि० सं० है। [वास्तव में कुमारपाल का राज्यारोहण सं. ११९६ में हुआ था। इस एवं वलभी और सिंह संवत्सर के लिये कृपया देखिए---रासमाला, प्र. भा. उत्तरार्ध, हिन्दी अनुवाद, टिप्पणी पृ. ११०-१११ व ११७] । प्रेग (Prague) निवासी पादरी जिसने १२वीं शताब्दी में 'बोहेमियां का इतिहास' (Chronicon Bohemirum) लिखा था। यह पुस्तक १६०२ ई० में प्रकाशित हुई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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