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________________ प्रकरण - १६; पाटण के पतन की कहानी [ ३६३ करने से ही शान्त हो गया था? यदि हमें इस बात का निश्चय हो जाय कि दरवाजे की मीनारें और मम्बार या मुल्लां का धर्मासन उसी के समय में छोड़े हुए हैं तो हम उसके द्वारा किए हुए विध्वंस का परिणाम ज्ञात कर सकते हैं। प्रत्यक्ष में किसी दूसरे इसलामी हमले का उल्लेख नहीं मिलता' इसलिए इस परिणाम पर पहुँचने के लिए यह और भी दृढ़ कारण उपस्थित हो जाता है कि कुमारपाल के बाद (जिसके लेख से ज्ञात होता है कि हम उसके प्रति मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिए आभारी हैं) कोई भी राजा इतना समृद्ध नहीं हुया कि जो इतनी विशाल इमारत को उठा सकता, क्योंकि उसकी मृत्यु के उपरान्त नहरवाला का साम्राज्य द्रुतगति से विनाश की ओर अग्रसर हो चुका था। परन्तु, यदि यह अनुमान ठीक भी निकले तो एक और प्रश्न खड़ा हो जाता है, जो बड़ी दुविधा में डालने वाला है; वह यह है कि महमूद से पूर्व विध्वंसक कौन हुआ ? और, इसमें कोई सन्देह नहीं है कि विध्वंस या परिवर्तन इसमें अवश्य हुआ है क्योंकि एक स्तम्भाधार को ध्यानपूर्वक देखने से एक स्थल पर, जहाँ सामने का कुछ अंश हटा दिया गया है, एक भारी पत्थर पर मेरी दृष्टि पड़ी जिस पर संगतराशी का काम हो रहा है और जो अब भी नींव का मुख्य भाग बना हुआ है। इस पर तराशी हुई मूर्तियाँ उलटी हैं (अर्थात् पत्थर उलट कर रख दिया गया है) जो जीर्णोद्धार के अतिरिक्त और किसी अवसर पर सम्भव नहीं हो सकता। किसी भी प्रकार की हानि के लिए खुला होने के कारण यह भाग (यथावत् है और) यह बतलाता हैं कि वर्तमान नींव को भरने में अधिकतर प्राचीन इमारतों का मलबा ही काम में लिया गया है। परन्तु, महमूद से पहले के किसी ऐसे आक्रामक का हमको पता नहीं है जिसके धर्म में मूर्ति-भंजन कर्तव्य माना गया हो और न मध्य एशिया के इन्डो-गेटिक आक्रामकों में ही कोई ऐसा था, जो ऐसी बातों की परवाह करता हो। कम से कम हमको तो यह किसी ने नहीं कहा कि वे मूर्ति-भञ्जक थे; यद्यपि, यह अवश्य है कि उन्होंने रक्षकों को आत्मसमर्पण के लिए विवश करने को बलभी में सूर्य-कुण्ड को रक्त से भ्रष्ट कर दिया था। यद्यपि मेरे द्वारा बेला[रावल में खोज निकाले गए और मूलतः सोमनाथ से प्राप्त शिलालेख (परि० ७) के विषय को मैं अन्यत्र स्पर्श कर चुका हूँ, फिर भी इस स्थल पर उसको छोड़ कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता क्यों कि वह ' वास्तव में, सोमनाथ पर अन्तिम प्राक्रमण करने वाला महमूद बेगड़ा (१४६० ई०) था न कि महमूद गजनवी। -रासमाला (हिन्दी अनु० भाग २) टि० पृ० ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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