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________________ ३६२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा मन्दिर पर धावा बोल दिया गया और एक भयानक रोमहर्षण संघर्ष के बाद वह ध्वस्त हो गया। रक्षकों में से इक्के-दुक्के ही बच पाये; लिङ्ग को भग्न कर दिया गया और 'पावनानां पावन सोमनाथ' की वेदी से 'सच्चे खुदा और उसके पैगम्बर' का नाम गंज उठा। नगर में खुली लूट मच गई और मन्दिर से प्राप्त विपुल धनराशि के अतिरिक्त विजेताओं को इस लुट से अपार धन प्राप्त हुना। मीता खाँ को पट्टण और अधीनस्थ प्रदेश का हाकिम बनाया गया और चौरासी अथवा एक सौ गांवों सहित मांगरोल हाजी के एक सम्बन्धी को इनायत कर दिया गया। सुलतान के लोट जाने के बाद हिन्दुओं ने मीताखां के विरुद्ध सर उठाया परन्तु उनका विद्रोह उन्हीं के लिए घातक सिद्ध हुआ।' इस प्रकार हस्तलेख समाप्त होता है। . इस खण्डित हस्तप्रति में मुकाबला करने वाले राजा का नाम नहीं दिया हुप्रा है जो, मैं समझता हूँ, सौराष्ट्र के पुराने स्वामी चावड़ा राजपूतों में से था और इस प्रसंग में फरिश्ता का कथन हमें ठीक प्रतीत होता है कि वह राजा एक नाव में बैठ कर बच निकला था। इसी हस्तलेख में इतिहासकार ने एक और कथा को भी लिपिबद्ध किया है, जिसमें अन्तरिक्ष में अधर लटकती हुई प्रतिमा को महमूद द्वारा गदा-प्रहार से भूमिसात् किए जाने का वृत्तान्त है। यहाँ पर यह पुनः कह देना होगा कि यह हस्तलेख किसी मूल प्रामाणिक कृति का अंश है; सम्भवतः, वह 'तारीखे महमूद गज़नी' हो जिसको प्राप्त करने के लिए हिन्दुस्तान की राजधानी तक में मेरी खोज बेकार गई, यद्यपि यूरोप में इस कृति की कितनी ही प्रतियाँ उपलब्ध हैं। इसके सूक्ष्म निरीक्षण से ही यह निर्णय किया जा सकेगा कि यह जखीरा उक्त कृति का ही अंश है या क्या, तभी हम किसी तरह उस राजा का नाम ज्ञात कर सकेंगे जिसने इस प्रकार जान झोंक कर वीरता से गजनी के सुलतान का सामना किया। एक बात और है, जिसका सन्तोषपूर्ण निश्चय होने पर और भी महत्व के परिणाम निकल सकते हैं; यह यह कि, क्या वर्तमान खण्डहर उसी मन्दिर के अभिन्न अंश हैं, जिसको महमूद ने ध्वस्त किया था और क्या उसका धर्मोन्माद 'बाल के मन्दिर' को अपवित्र करने तथा उसको इसलामी मसजिद में परिवर्तित ' इस विषय में हिन्दू-ग्रन्थों में तो कोई प्रामाणिक वृत्तांत नहीं मिलता है, परन्तु 'इन्ने असीर' नामक ११६० ई० में लिखित पुस्तक के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उस समय भीमदेव प्रथम ही राजा था। -देखिए, रासमाला (हिन्दी अनु०) भा० १ पूर्वाद्धं (टिप्पणी पृ० १६१-१६४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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