SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 490
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण - १६; पाटण का पतन [३६१ रिचित भाषा में किए हुए आत्मसमर्पण के निवेदन को सुनने-समझने वाला भी शायद कोई ही उस उत्तर से आए हुए बर्बर लोगों के काफिले में रहा हो, जो सभी प्रकार की दुर्भावनामों से उत्तेजित हो रहे थे । लम्बे समय तक चले घेरे में नष्ट हुए मित्रों और सम्बन्धियों का बदला, धर्मोन्माद, जिसमें प्रत्येक काफिर का धड़ से जुदा किया हा सिर अहले-ईमान के लिए पैगम्बर द्वारा स्वीकार्य निजात [मुक्ति] का तोहफा बना हुआ था; ये भावनाएं और इन जिद्दी लोगों में इससे भी प्रबल लूट और वासना के प्रलोभन की दीवारें खड़ी हुई थीं जो दया के प्रवाह को आगे बढ़ने से रोक रही थीं। उधर, सोमनाथ के रक्षक राजपूत सर्वस्व होम देने की भावना से लड़ रहे थे; मानवीय शौर्य को उद्बुद्ध करने के अन्य सभी प्रलोभनों के अतिरिक्त वैकुण्ठ-प्राप्ति की सतत आशा उनकी दृष्टि के आगे खेल रही थी। वे यह भली भाँति जानते थे कि उनके प्राणों की रक्षा केवल एक शर्त पर अवलम्बित थी, और वह थी-उनके मन्दिरों का विनाश, धर्म का परित्याग और मोहम्मद की वेदी के सामने प्रणिपात। नगर में खून के पनाले बह गए, धर्म, अरमान और प्रतिष्ठा की खातिर दोनों ही पक्षों के अगणित योद्धा मौत के शिकार हो गए, चुनी हुई सेना की टुकड़ी के अगुवा जफर और मुजफ्फर भी मारे गए और मन्दिर के पश्चिम में उनकी याद में बनी हुई मसजिद उस स्थान को बतला रही है, जहाँ वे शहीद हुए थे। सड़कें लाशों से रंध गई थीं और हजारों मृत शरीर सोमनाथ के मन्दिर के आसपास बिखरे पड़े थे। फिर भी, महमूद और उसके साथ उत्तर से आए हुए अवर सिपाहियों के सभी प्रयत्न व्यर्थ गए, क्योंकि उस दिन इसलाम का झण्डा उस परकोटे पर न फहर सका, जो हिन्दुओं के पैलाडिअम (Palladium),' संरक्षक देवता के चारों ओर घिरा हुआ था। 'निर्णायक संघर्ष के घटने में अधिक समय नहीं लगा; अपने राजा की अध्यक्षता में सात-सौ वीरों ने मन्दिर के मुख्य द्वार पर अपने देवता की प्रतिमा को भ्रष्ट होने से बचाने के लिए प्राणान्त युद्ध किया। इससे पूर्व सुलह के लिए चालीस लाख (द्रम्म) देने का प्रस्ताव किया गया, जिसको लोभ अथवा उदारतावश महमूद ने स्वीकार भी कर लिया था, परन्तु सलाहकारों के तिरस्कार ने उसके सुप्त शौर्य को पुन: जागृत कर दिया और 'काफिरों से कोई सुलह नहीं' 'मन्दिर को नेस्तनाबूद कर दो' के नारों ने उनको उस भविष्य के लिए सज्ज कर दिया, जो उनकी प्रतीक्षा में था । • पैलास Pallas की मूर्ति, जिसकी सुरक्षा पर ट्रॉय Troy नगर को सुरक्षा अवलम्बित थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy