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________________ प्रकरण १७ दूरी के ज्ञान में प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिट्टी की किस्म मन्दिर और शिलालेख, निवासी; चोरवाड़; महीर; मालिया, उन्याला अथवा उणियारा; जूनागढ़ ; प्राचीन इतिहास एवं वर्तमान दशा; प्राचीन दुर्ग का विवरण; याववों का सरोवर; 'बाहरबाट को गुफा'; अस्पष्ट प्रक्षर; गिरनार का प्राचीन शिलालेख, लिपि और अक्षर; देवालय; सांकेतिक लिपि के शिलालेख, भैरूं उखाळ ; निर्जन चट्टान; खंगार के प्राचीन महल । चूड़वाड़ [चौरवाड़] दिसम्बर ४ थी-अनुमानित नाप के अनुसार आज की मंजिल आठ कोस की थी; यह फासला सोलह मील से कम न था और सीधासीधा साढ़े चौदह मील तो था ही। जो बहुत सी बातें भारत में किसी यात्री के ध्यान में आती हैं उनमें से एक जो उसको आश्चर्य में डाल सकती है वह यह है कि यहाँ के प्रायः सभी लोगों को पास-पड़ोस के स्थानों की दूरी का सामान्य ज्ञान रहता है; यद्यपि अन्य देशों में माप को विभिन्नता हो सकती है परन्तु इनके ज्ञान में एक ही प्रकार की समानता और शुद्धता सर्वोपरि है। इसका कारण क्या है ? निश्चय ही यह संयोग की बात नहीं है और न केवल सामान्य कासिदों [दूतों द्वारा दिया हुआ विवरण ही इसका आधार हो सकता है। वास्तव में, ये उस प्राचीन सभ्यता के अवशेष हैं, जिसकी हम स्वभावतः अवगणना करते रहते हैं यद्यपि उसमें समाज के कल्याण, सुख-सुविधा और बौद्धिक विकास के सभी आधार विद्यमान रहे हैं, चाहे वह युगों पुरानी नैतिक एवं राजनैतिक परवशता के खण्डहरों के नीचे दबो रही हो, परन्तु अभी तक भी परम्पराओं तथा लेखों में वह निःशेष नहीं हुई है; और, इन दोनों ही प्राधारों से इस बात की सम्पुष्टि होती है कि बहुत प्राचीन काल में भारतवर्ष-भर में सड़कों की नाप के प्रकार प्रचलित थे। यही कारण है कि इस खुले देश में वाचिक अनुमान के आधार पर दूरियाँ कायम को हुई हैं, जो जरीब अथवा सतह नापने के यन्त्रों से मापने पर सही निकलती हैं । मेरे देशवासी यदि एक हजार अथवा पन्द्रह सौ मोल की पदयात्रा करें तो उन्हें 'कोस' की सभी विभिन्नताओं का परिचय प्राप्त हो सकता है क्योंकि वे अपने प्रातराश की भूख में यहाँ के निवासियों की मान्यतामों को सही-सही नापना अवश्य चाहेंगे और तब वे उनको 'सर्वशुद्ध' की ही संज्ञा देंगे, जब कि गांग-प्रदेश का साधारणतया दो मील का कोस आगे चल कर इतना लम्बा हो जाता है कि जिसको स्कॉटलैण्ड के पहाड़ी लोग (a we bittie) कहते है, जो प्रायः चार या पाँच मील का होता है । परन्तु इन विभिन्नताओं से देश में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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