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________________ · प्रकरण - १६; पाटण का पतन [ ३५६ (अथवा १०२५) ई० में हुआ और कुमारपाल की मृत्यु ११६६ ई० में हुई, इससे यह विचार होता है कि यह शायद कोई वह आक्रमण था जिसका (मुसलिम इतिहास में उल्लेख होने से रह गया है) चरित्र में वर्णन हुआ है और जिसके परिणाम में कुमारपाल की राज्यच्युति, धर्मपरिवर्तन [तबलीग] और मृत्यु हुई तथा उसके पश्चात् 'पागल' अजयपाल गद्दी पर बैठा। इस सब में मुख्य रुकावट और गड़बड़ी महमूद के नाम की है। परन्तु, यही नाम अथवा गजनी की गही पर उसके क्रमानुवतियों में से मौदूद का नाम भी अप्रसिद्ध नहीं था। फिर, 'चरित्र' का यह उल्लेख भी इसके पक्ष में ही है कि कुमारपाल ने मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया और इसके गुम्बज पर सोना चढ़वाया, इत्यादि । इससे मेरा यह कथन भी पुष्ट हो जाता है कि इसकी नींव में उलटी मूर्तियां लगी हुई हैं, परन्तु, इस हस्तलेख का आधार प्रत्यक्ष में अधिक प्रामाणिक है। "बादशाह ने महासरोवर पर मोर्चा लगाया और पट्टण के राजा ने भलकाकुण्ड पर । पूरे एक मास तक बहुत-सी लड़ाइयां हुई और दोनों ही ओर से खूब खून-खच्चर हुआ । सुलतान ने अपने पीछे की ओर मजबूत मोर्चा जमाया और इसी तरह पवित्र त्रिवेणी पर भी सुदढ़ प्रबन्ध किया; परन्तु, हमीर' और बेगडा गोहिल बंधुओं ने, जो पट्टण के राजा की सहायता के लिए पाए थे, उनकी सेनाओं को काट कर छिन्न-भिन्न कर दिया। इस तरह पांच मास व्यतीत हो गए तब दूसरा घमासान युद्ध हुआ, जिसमें सुलतान की सेना के नौ हजार और हिन्दुओं के सोलह हजार प्रादमी मारे गए । परन्तु मजहबी सेनाएं दबाव डालती रही और सुलतान ने कंकाली के मन्दिर पर कब्जा कर लिया। उसने वहीं पर अपना मुख्यस्थान कायम किया और उन इमारतों पर धावा बोलने का हुक्म दिया जिनसे सोमनाथ की रक्षा हो रही थी। उसको विजयश्री का लाभ होने ही वाला था कि उसी दिन हाजी मर गया। तीन दिन तक उसने खाना नहीं छुना और कुछ समय तक सन्त के दर्शन न मिलने से उसका शोक , यह हमीर लाटी और अरटीला के ठाकुर भीमजी गोहिल का छोटा पुत्र था। जब १४९० ई० में महमूद बेगड़ा ने सोमनाथ पट्टण पर चढ़ाई की तब वह अपने मित्र और श्वसुर बेगड़ा भील की सहायता से पांच-सौ साथियों के साथ सोमनाथ की रक्षा करता हुआ युद्ध में काम आया था। बेगड़ा भील की पुत्री से जो हमीर की सन्तान हुई उसके वंशज देव जिले में नाघेर नामक स्थान में अब भी पाए जाते हैं और वे गोहिल कुली कहलाते हैं। प्रतः उक्त घटना महमूद गजनवी के प्राक्रमण के समय की नहीं है। ग्रन्थकर्ता ने भ्रमवश दोनों आक्रमणों की घटनाओं को घिलमिल कर दिया है। -रासमाला (हिन्दी अनुवाद) द्वि. भा.; पृ. ११२-१३ रा.प्रा.वि.प्र. में भी 'परजन हमीर की वार्ता' शीर्षक एक हस्तप्रति सं० २१५६ परहै । जिसमें इस घटना का रोचक वर्णन दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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