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________________ ३५८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा भी तरह हठ नहीं छोड़ता था। मन्दिर पहँच कर वह बाहरी सीढ़ियों पर बैठ गया, जहाँ से नन्दी की पीतल की प्रतिमा के पास जाते हैं और जहाँ बलि चढ़ाई जाती है। राजा और कार्यकर्ता पुजारी आदि को पहले ही वहाँ बुला लिया गया था और बलि-पात्र भी वहीं उपस्थित था। हाजी ने राजा से पूछा कि 'क्या चढ़ाई हुई भेट को नन्दी खा जायगा ?' राजा ने कहा, 'नहीं, परन्तु, यह परम्परा है कि लड्डुओं की भेंट सदा ही चढ़ाई जाती है।' तब हाजी ने पानी मँगवाया और जब एक भक्त कुण्ड में से पानी लाने चला गया तो उसने लड्डुओं की परात उठाई और नन्दी के मुह के पास ले गया, जो लपालप लड्डू खाने लगा। यह देख कर सभी शाश्चर्यचकित हो गए और जब हाजी ने 'अल्लाहो अकबर' की बांग लगाई तो सोमनाथ का लिङ्ग अदृश्य हो गया और उसके स्थान पर एक हब्शी प्रकट हुआ, जिसको हाजी ने अपने प्याले में जल लाने का हुक्म दिया। जब वह जल ले आया तो, कहते हैं कि, तुरन्त ही खबर मिली कि कुण्ड का पानी सूख गया और पवित्र मछलियां नष्ट होने लगी; तब पानी का प्याला वापस कर दिया गया और कुण्ड में पानी पुनः उझलने लगा। तेली के लड़के की जान तो बच गई परन्तु पट्टण के मूर्तिपूजकों को दण्ड देने के लिए हाजी ने, अपनी चमत्कारिक योग्यता को ही पर्याप्त न मानते हए, तुरन्त ही एक सन्देशवाहक को गजनी रवाना कर दिया। जब संत का प्राज्ञापत्र महमूद के पास पहुंचा तो वह क्रोध के मारे प्रायः अन्धा हो गया, परन्तु जब उसने उस पवित्र लेख को आदरपूर्वक अपने सिर के लगाया तो उसकी दृष्टि लौट आई।' इस चमत्कारिक उपचार के सम्पन्न होते ही कूच का हुक्म तो होना ही था। हाजी की करामात में हमारा विश्वास हो या न हो, परन्तु इस कथा का तिथिक्रम तो किञ्चित् भी विश्वसनीय नहीं है और सम्भवतः हिन्दू भाट ही, जिसने ईरान की परिष्कृत भाषा में अपनी 'भाखा' मिला दी है, इस ऐतिहासिक तिथिव्युत्क्रम के लिए उत्तरदायी है। इसमें बताया है कि महमूद ने शाह के कोपभाजन स्थल मांगरोल में आने के लिए सतलज को उस स्थान पर पार किया, जहाँ वह सिन्धु से मिलती है और वह जैसलमेर के (जो दो शताब्दी के बाद बना था) रेगिस्तान में होकर पाया। इस हस्तलेख में लिखा है कि पट्टणविजय करने से पूर्व महमूद के चौबीस हजार प्रादमी मारे गए । उसके द्वारा नगर पर अधिकार करने के विवरण में तिथि-सम्बन्धी और भी गड़बड़ियां हैं। लिखा है कि उस समय कुमारपाल पट्टण का राजा था और उसका भाई जयपाल मांगरोल पर शासन करता था। अब, भयोंकि महमूद का आक्रमण १००८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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