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पश्चिमी भारत की यात्रा
अथवा उत्कीर्ण वृत्तान्त उस व्यक्ति के विषय में नहीं मिला, जिसने हिन्दुयों से एक शाश्वत अपकीर्ति प्राप्त करने में गर्व का अनुभव किया था; और यद्यपि बालदेव के मन्दिर के किसी समय गर्व से उन्नत रहने वाले शिखर के बिखरे पड़े खण्ड फरिश्ता' को जानने वाले के लिए किसी पुस्तक से कम नहीं हैं, फिर भी उन लोगों के लिए, जिनसे उनका प्रत्यधिक सम्बन्ध है, वे रून ( Runes ) ' अक्षरों के समान दुर्वाच्य और दुर्बोध वस्तुएं हैं। मानव जाति कितनी सुखी और प्रसन्न होती यदि महत्वाकांक्षा के सिर पर झूठे और बाहरी आकर्षण को लिए हुए ताज के बजाय, जो बुद्धिमान् से बुद्धिमान् को भी ललचा कर विनाश की ओर ले जाता है, अन्धकार और विस्मृति का प्रावरण पड़ा होता ! परन्तु, जोप्पा
' फरिश्ता का पूरा नाम 'मोहम्मद कासिम हिन्दूशाह' था । वह पर्सियन वंश का था और कैस्पियन सागर के तट पर अश्तराबाद नामक नगर में १५७० ई० के लगभग पैदा हुआ था । प्रायः १२ वर्ष की अवस्था में ही वह अपने पिता के साथ भारत में प्राया था और श्राजीवन अहमदनगर के निजामशाही दरबार में रहा । बहुत छोटी अवस्था में ही उसने ऐतिहासिक वृत्तों का संकलन प्रारम्भ कर दिया था और १५६६ ई० के लगभग तो उसने बीजापुर के शासकों का वृत्तान्त पूरा कर लिया था। उसकी पुस्तक का मूल नाम 'गुलशने इब्राहिमी' है परन्तु वह 'तारीख-ए-फरिश्ता' के नाम से अधिक प्रसिद्ध है । इस पुस्तक का फारसी मूल तो १६०५ ई० में नवलकिशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित हुआ था और उर्दू अनुवाद भी १९३३ ई० में इसी मुद्रणालय से निकला था। जॉन ब्रिग्स को सुप्रसिद्ध पुस्तक "History of the Rise of Mahomadan Power in India till the year 1612 A.D. के प्रथम भाग में 'तारीखे फरिश्ता' का अंग्रेजी अनुवाद है, जिसको इतिहास के विद्वान् प्रायः उद्धृत करते रहते हैं । यह पुस्तक कलकत्ता से १६१० ई० में प्रकाशित हुई है। फरिश्ता की मृत्यु १६११ ई० के लगभग हुई मानी जाती है। • स्कैण्डिनेविया की एक दुर्वाच्य लिपिविशेष । पहले इस में २४ गए। इन प्रक्षरों में मरोड़ नहीं होती । ग्रेट ब्रिटेन के प्राचीन मिलती है। हड्डी, धातु और मुद्राओं में भी ये अक्षर खुदे मिलते हैं ।
-N.S.E.; p. 1078
'जफो' और अरबी में
Joppa पेलेस्टाइन का एक प्राचीन बन्दरगाह । इसको हिब्रू में 'याफा' या 'जफ़्फा' कहते हैं। स्ट्रॅबो ने लिखा है कि यह समुद्री लुटेरों का अड्डा था, इस कारण यहूदियों के युद्ध में इसको बरबाद कर दिया गया । श्राधुनिक नगर के दक्षिण में एक छोटी सी खाड़ी है, जो 'बिर्केत अल्- कम्र' ( चंद्र-सरोवर ) कहलाती है; सम्भवतः वहीं प्राचीन बन्दरगाह भी था । ११८७ ई० में सलादीन ने इस नगर पर अधिकार कर लिया था और ११६१ ई० में रिचार्ड प्रथम ने इसे मुक्त करा दिया, परन्तु ११९६ ई० में मलिक अल-आदिल ने पुनः इस पर कब्ज़ा कर लिया । १७६६ ई० में नेपोलियन ने भी इस नगर पर धावा मारा था। उस समय यह परकोटे से घिरा हुआ था, जिसको बाद में
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अक्षर थे फिर १६ रह
शिलालेखों में यह लिपि
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