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प्रकरण - १६; सोमनाथ का मन्दिर |३५५ फैली हुई खाड़ी है, जिसके स्पष्ट और गौरवपूर्ण वक्रता लिए हुए तट की सुनहरी वालुका में लहरें निरन्तर हलचल पैदा करती रहती हैं। भारत में तो इसकी समानता करने वाला स्थल कोई है ही नहीं, अपितु संसार की सुन्दर से सुन्दर पैन्जान्स (Penzance) से सैलेरम (Salerum)* तक जिन बड़ी-बड़ी खाडियों को उनकी पृष्ठभूमिगत समस्त सज्जा-सहित सन्ध्या की मनोरम घड़ियों में मैंने देखा है, उनमें से किसी ने भी पट्टण की खाड़ी से बढ़ कर मेरी कल्पना को इतनी प्रबलता से प्रभावित नहीं किया। बेलावल का बन्दरगाह और उसके ऊपर का भ-भाग अपनी विशाल श्यामल भित्तियों सहित, जो यूरोपीय समुद्री लुटेरों से रक्षार्थ निर्मित की गई थीं, दृष्टि-विराम के लिए एक आकर्षक दृश्य उपस्थित करता है और यहीं से भूमि का रुख उत्तर में द्वारका की ओर घूम जाता है। गिरनार के शिखर, जो यहां से बीस कोस की दूरी पर हैं (उ० ७० पू०), विशिष्ट भावनाएं उत्पन्न करते हैं और यदि दर्शक अधिक शान्त दश्यों में रमने वाला हो तो आसपास का प्रदेश उसकी रुचि के दृश्य उपस्थित करता है । ये मैदान वन-संकुल हैं और प्रकृति एवं उसकी कला दोनों ही ने इनमें विचित्रता उत्पन्न कर दी है।
ऐसा है मूर्तिपूजकों का यह मुख्य मन्दिर, जिसके ध्वंस को हिजरी सन् ४१६ (१००८ ई०) में गज़नी के सुलतान ने एक 'धार्मिक कर्तव्य' की संज्ञा दी थी। यह अनुमान सहज ही में लगाया जा सकता है कि इस युद्ध का विवरण, जो कि इसलामी इतिहासकारों के लिए गौरव का विषय था और जो वीरता इसमें प्रदर्शित हुई थी उसकी समानता करने वाला वर्णन 'क्रूसेडर्स' के धर्मयुद्ध के इतिहास में भी नहीं मिलता, अवश्य ही वज्र-लेखनी से इस मन्दिर के प्रत्येक पत्थर पर लिखा गया होगा; परन्तु, यह बात जितनी अविश्वसनीय लगती है उतनी ही सत्य भी है कि पूर्वकाल में क्रूरतम यातनाओं के कारण जाति-विशेष पर कितनी ही आपदाएँ प्रा पड़ी हों, फिर भी आज इस देवनगर में महमूद महान् का नाम तक किसी मुसलमान के लिए उसी प्रकार अपरिचित है जिस प्रकार किसी ब्राह्मण, बनिए अथवा विणजी के लिए। मेरे मित्र मिस्टर विलियम्स और उनके समस्त अधिकारों की सहायता से भी मुझे एक भी परम्परागत मौखिक
, इंगलैंड के दक्षिण-पश्चिमी किनारे पर कॉर्नवाल का एक सुन्दर बन्दरगाह। यह मछली पकड़ने का केन्द्र है और यहाँ से टिन, तांबा और चीनी मिट्टी का सामान बाहर भेजा
जाता है।-N. S. E., p. 985 २ इटली का बन्दरगाह । यहाँ ११वीं शताब्दी का बना हुमा एक गिरजाघर है, जिसमें सुन्दर
लकड़ी में कुराई का काम हो रहा है । वही, पृ० १०६२ ।
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