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________________ ३५४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा जिसके विषय में व्याख्याकारों ने कहा है कि 'यह एक छोटी-सी इमारत है, परन्तु, इसके श्रासपास बनी हुई बहुत सी कचहरियों और कार्यालयों के कारण सब मिला कर यह एक विशाल ढेर सा लगता है ।' सोमनाथ का मन्दिर अपने ही ऊँचे परकोटे से घिरे हुए एक विशाल चौकोर चौक के बीच में खड़ा है । इसके आसपास में बने हुए छोटे-छोटे मन्दिर, जो उपग्रहों के समान सोमनाथ की शोभा बढ़ाते थे, अब भूमिसात् हो गये हैं और उनके मलबे से मसजिदें, दीवारें और मत्यों के आवास निर्मित हो गए हैं। चौक के विस्तार का सीधा और सरल अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि बालदेव और उनके पुजारियों के अभिषेक के लिए बना हुआ जल- कुण्ड मुख्य मन्दिर से पूरे एक सौ गज की दूरी पर है। बड़ी मसजिद के जिसे जुमा मसजिद (Joomma Masjid ) कहते हैं, बनाने में कम से कम पाँच छोटे मन्दिरों की सामग्री लगी होगी क्योंकि इसके पाँच छतरीदार गुम्बज अपने समस्त उपकरणों सहित विशुद्ध हिन्दू, शैली के हैं और खम्भों की तिहरी पंक्ति से घिरे हुए जिस विशाल आँगन के मध्य यह मसजिद स्थित है उसके निर्माण में बारह और मन्दिर समाप्त हो गए होंगे। , हिन्दुनों में इसके प्रति ऐसा था, श्रीर ऐसा है सोमनाथ का मन्दिर, जो अब भी आदरणीय है; हिन्दुओं के समृद्धिशील और विजयोल्लास के दिनों में तो यह अपने प्रबन्धोपकरणों सहित और भी अधिक गौरवपूर्ण रहा होगा ! इस समय जो इसकी दुर्दशा हो रही है उसकी कल्पना स्वयं महमूद ने भी शायद ही की हो। समस्त पूज्यभाव लुप्त हो गया प्रतीत होता है । प्रवेश द्वार पर बनी हुई मीनारों तथा मक्का की प्रोर देखते हुए मुल्लों के धर्मासन के प्रति मुसलमानों में किञ्चित् भी श्रद्धा नहीं रह गई है और भ्रष्ट सूर्य-मन्दिर को पुनः पवित्र करने के लिए गङ्गा का सम्पूर्ण जल भी अपर्याप्त होगा । हुल्कर महान् की पत्नी अहल्याबाई ने, जिसकी परोपकारिता भारत में कैलास से लेकर पृथ्वी के छोर तक सुप्रसिद्ध है, एक छोटे से मकान के स्थल पर मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया है, जहां अब भक्त लोग सोमनाथ का पूजन करते हैं। इसके समीप ही बड़ोदा के दीवान ने एक विशाल धर्मशाला बनवाई है, जिसके विषय में ऊपर लिखा जा चुका है । मन्दिर के लिए चुने हुए स्थल को सुन्दरता में और कोई स्थल नहीं पा सकता; यह एक आगे निकली हुई चट्टान पर खड़ा है, जिसके तल को समुद्र प्रक्षालित करता है। यहां प्रबल जलराशि के छोर पर टिकी हुई दृष्टि जब उसके अनन्त विस्तार में खो जाती है तब लहरों के एक मात्र गर्जन में भक्त को एक प्रकार की वरदानमयी शान्ति का अनुभव होता है । उसके सामने बेलावल तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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