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________________ प्रकरण - १६, सोमनाथ का मन्दिर [ ३५३ समान ध्वनि निकलती है। इन खम्भों और उनके शीर्षपट्टों की स्थिति से, जो एक अर्धाण्डाकार गुम्बज के लिए अष्टकोण आधार बनी हुई है, यह प्रमाण मिलता है कि 'पाड़ी डाट' के सिद्धान्तानुसार इस छतरी की मूल आयोजना हिन्दू-प्रकार की हो रही है; परन्तु, वर्तमान मेहराब अधिक वैज्ञानिकता और सप्रकाश स्पष्टता के आधार पर बनी हुई है और इसमें ईटों का प्रयोग भी हुआ है इसलिए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए विवश हो जाते हैं कि, हिन्दू कारीगरी हो अथवा तुर्क परन्तु इतना अवश्य है कि, यह मूल इमारत का भाग नहीं है । इसी का एक और भी सबल प्रमाण है, जो इस अनुमान की पुष्टि करता है कि यह मुसलिम कारीगरी है। मुखभाग के अतिरिक्त, जिससे दालान में होकर निज-मन्दिर में जाते हैं, इसकी अन्तःस्तम्भ-संघटना सुघड़ और मेहराबदार है और ये मेहराबें एक को छोड़ कर एक नुकीली अथवा दीर्घवृत्ताकार हैं । छतरी के मुख्य भाग, जिसका अभी वर्णन किया गया है, और निज-मन्दिर के बीच में एक विस्तीर्ण पाच्छादित और स्तम्भपंक्तियुक्त अलिन्द है, जिसमें अब कूड़े और मलबे का ढेर लगा हुआ है, जिससे प्रवेशद्वार अवरुद्ध हो गया है। यह विध्वंस का ढेर अभी हाल ही का है और कहते हैं कि यह तोपों की गड़गड़ाहट के कारण हुप्रा है; ये तोपें, लड़ाई के समय, किनारे पर मंडराने वाले फ्रांसिसियों के सामान्य जहाजों को रोकने के लिये मन्दिर की छत पर लगाई गई थीं। जैसेतैसे मैं गुहा-गृह में गया, जो तेवीस फीट लम्बा और बीस फीट चौड़ा सामान्य-सा अन्धेरा कमरा है, जिसमें एक भीतरी सुरंग है, जिसमें होकर सम्भवतः बालनाथ के महन्तजी मण्डप में बैठे हुए भक्तजनों तक अपने सहयोगियों द्वारा देवी उपदेश पहुँचाया करते होंगे। जहाँ शिव का महालिङ्ग स्थापित था वह स्थान अब ध्वस्त पड़ा है और पश्चिमी दीवार में 'मक्का पाक' की ओर देखता हुया 'मुल्लां का धर्मासन खुदा हुआ है। मुख्य कक्षों और बाहरी दीवार के बीच में भारी-भारी खम्बों की पंक्ति है, जिन पर बने हुए चपटे अथवा अर्द्धवृत्ताकार बाहर निकलते स्तम्भशीर्षों पर छत की पट्टियां टिकी हुई हैं। इनमें प्रयुक्त सामग्री जूनागढ़ की पहाड़ियों से निकले हुए ठोस बलुमा पत्थर की है, जिसको गढ़ कर चौकोर अथवा आयताकार शीर्ष बनाए गये हैं और वे चूना मिली हुई बजरी से, जो कंकर कहलाती है, पुख्ता कर दिये गये हैं । यह बजरी पाटण के आसपास के गड्ढों से खोद कर निकाली जाती है। परन्तु, सौरों का यह बालनाथ का मन्दिर इसके चारों ओर बने हुए छोटेछोटे देवालयों से स्पष्ट ही बड़ा और सुन्दर है, और इन्हीं से अपना गौरव ग्रहण करता है । इस बात में भी यह सुलेमान के मन्दिर से अनुरूपता लिए हुए है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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