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________________ ३४८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा - मुख्य प्रवेशद्वार उत्तरी दीवार के बीच में है और एकदम सुदढ एवं आधुनिक है, यदि हम 'आधुनिक' शब्द का प्रयोग इस अर्थ में करें कि प्राचीन टूटे हुए मन्दिरों के मलबे से इसका पुननिर्माण कराया गया है। यह त्रिपोलिया एक प्रकार से दोहरा आंगन को घेर कर बनाया गया है। पहला दरवाजा उत्तर को देखता है; दूसरा इससे समकोण बनाता हुआ अर्थात् पूर्व की ओर है और इसी प्रकार तीसरा इस दूसरे से समकोण बनाता है, जिससे निकलने पर विशाल मन्दिर का पूरा दृश्य सामने आ जाता है। इस प्राकार-वेष्टित पोल को ऊंचाई पूरे साठ फीट की है। यह शस्त्र-प्रयोग के लिए उपयुक्त स्थान है, शत्रु-सेना को रोकने के लिए सोच-समझ कर बनाया गया है और इस बात का अन्तःसाक्ष्य प्रस्तुत करता है कि मजहब के योद्धाओं का प्रमुख अाक्रमण यहीं पर हुअा था। दूसरे दरवाजे पर एक ठोस, बन्द और सुडौल छतरी बनी हुई है, जहां से शत्रुसेना पर निगह रखी जा सकती है; इस छतरी के कारण इसकी समानता नॉरमन' (Norman) किलेबंदी की शैली के अधिक निकट आ जाती है और संपूर्ण दृश्य को पेंसिल-कार्य (चित्र) के लिए एक आकर्षक विषय बना देती है। कुराई के काम की सजावट भी बहत है जिसका अतीव आकर्षक भाग पहले द्वार पर है, जहां शैव-मन्दिरों का वही प्रिय विषय प्रदर्शित है, जिसमें एक मनुष्य सिंह से युद्ध करने में व्यस्त है; वह उसकी पीठ पर सवार है और दृढ़ता से उस पशु के शिर को पकड़ कर अपनी कटार उसके गले में भोंक रहा है। सम्भवतः इसके द्वारा पशु-बल और अन्ध-साहस पर बुद्धि तथा कौशल की विजय दिखाई गई है। अब देखिए आप, मैं सोमनाथ की ड्योढ़ी में आ पहुँचा हूँ'; यही मूर्तिपूजकों का वह मन्दिर है, जिसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई है और जिससे आकृष्ट होकर 'सितारे इस्लाम' पैरोपैमिसां और कॉकेशश (Caucasus) के ' नारमन लोग, वास्तव में, उत्तरी फ्रांस के रहने वाले थे। बाद में, ये लोग इटली और सिसली में भी जम गए थे । १०६६ ई० में नारमण्डी का ड्यू क विलियम सैक्सनों को हरा कर इंगलेण्ड का राजा बना और 'विलियम दी कान्करर' (विजयी) के नाम से प्रसिद्ध हुपा। नारमन वास्तु कला गाथिक कला से पुरानी है । गोल मेहराब इसकी विशेषता है । इंगलेण्ड की बहुत सी पुरानी इमारतें नारमन प्रणाली की हैं। --N.S.E. p. 938 * पैरोमीसान् (Paropamisan)-प्राजकल जो विशाल पर्वतश्रेणी 'हिन्दूकुश' नाम से प्रसिद्ध है, उसे मकदूनियां वाले इण्डीकस कॉकेसस' (Indicus Caucasus) कहते थे। हिन्दूकुश' नाम का उद्गम इसीसे हुआ माना जाता है । लासॅन ने काबुल नदी के उत्तर में फैली हुई पर्वतश्रेणी का नाम निषध (Nishadha) लिखा है । पं रोप नि स स नाम टालमी का दिया हुआ है। जनरल कनिङ्घम के मतानुसार जेन्दप्रवेस्ता में उल्लिखित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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