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प्रकरण - १६; नुकीली मेहराब का उद्भव
[ ३४७ और मीनारें ऐसी नहीं हैं कि जिन पर इसलाम की सीढ़ियां प्रयोग में लाई गई हों तो इतना अवश्य है कि इनको इन्हीं के खण्डहरों से पुनः खड़ा किया गया है, क्योंकि इनकी प्राकृति और दृश्य समान हैं। वास्तव में, ये सोमनाथ की सुरक्षा के लिए. ही बनाई गई थीं न कि देवपट्टण के मर्त्य-निवासियों के रक्षणार्थ, क्योंकि यह घेरा वहां की आबादी और सम्पत्ति से, जो कोई एक मील की दूरी पर बताई गई है, बहुत फासले पर बना हुआ है । इसका यह तात्पर्य नहीं है कि शहर के अन्दर की ओर भी दीवार बनी हुई थी । भद्रकाली के मन्दिर में प्राप्त एक महत्वपूर्ण शिलालेख (सं० ५) से यह प्रश्न हल हो जाता है, जिससे ज्ञात होता है कि सोमनाथ की प्राचीन आड़ का जो भाग महमूद के अग्रदूतों से बच गया था, उसको सौराष्ट्र के सर्वसत्तासम्पन्न सम्राट् और नहरवाला के महाराजा कुमारपाल ने ठीक दो शताब्दी बाद पुनः सम्पूर्ण बनवा दिया था। नगर के पूर्वीय प्रवेशद्वार पर बाहरी दरवाजे के अतिरिक्त एक अन्तर्वर्ती सुरक्षा प्राङ्गण है जिसकी एक नुकीली मेहराबदार दूसरी पोल या ड्योढ़ी है; मेहराब के दोनों पार्श्वक खूब सजे हुए आजू-बाजू के चार चपटे स्तम्भों से उठ कर उन्हीं पर टिके हुए हैं । इनके शीर्षो पर समुद्री जलराक्षस बनाये गए हैं, जिनके फैले हुए जबड़ों में से मेहराबें निकलती हैं और उनके मुख में विभिन्न मुद्रात्रों में मनुष्याकृतियां बनाई गई हैं; यथा - किसी में अनिच्छा से उनमें प्रविष्ट होती हुई तो किसी में उस राक्षस के मले को कटार से चीर कर बाहर निकलती हुई । प्रायोजना, अनुपात और निर्माण की एकरूपता हमारे इस निर्णय को सम्पुष्ट करती है कि यह हिन्दू ढंग की इमारत है। पौराणिक आधार पर प्रायोजना और सामग्री- समायोजन पूर्णतया ऐसा ही होता है, क्योंकि सभी प्राचीन मन्दिरों के तोरणों में, वे जैन हों अथवा शैव, मेहराब को इसी प्रकार के जलराक्षस के जबड़ों से निकलते हुए दिखाया गया है । मैंने चम्बल पर बाड़ौली के शिव मन्दिर और आबू पर जैन मन्दिरों में यही प्रकार देखा है। अधिक से अधिक मैं इतना मानने को तैयार हूँ कि यदि इसका नक्शा किसी इसलामी शिल्पकार ने बनाया है तो निर्माण राजपूत राजा अर्थात् कुमारपाल और उसके शिल्पियों ने किया है । खम्भे तो निस्सन्देह हिन्दू ढंग के हैं और ऊपर का ठाठ भी उनके अनुरूप ही है इसलिए हमें नुकीली मेहराब के उद्गम का प्रमाण भी मिल ही जाता है इस पोल की ऊंचाई तीस फीट है और चौड़ाई भी उसी अनुपात से है । इस शिलालेख (परि० सं० ६) मिला, जिसमें एक यदुवंशी राजा की सुन्दर पुत्री भक्त यामुनी, के सत्कृत्यों का वर्णन उत्कीर्ण है ।
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प्रबेश द्वार पर मुझे एक
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देखिये – शिलालेख ।
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