SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चिमी भारत की यात्रा दुर्बोध्य मिस्री निशान देखे हैं, इनमें पूजा के अन्य उपकरणों का साम्य लिए हुए और भी बहुत प्रकार के चिह्न जोड़ दिये हैं। ____ मैं देवपट्टण में सूर्यपोल से प्रविष्ट हुअा। नगर के परकोटे की दीवार, इसमें प्रयुक्त हुई सामग्री और बनावट की दृष्टि से, उसी उद्देश्य के अनुरूप है, जिसके लिए इसका निर्माण हुआ है । ये दीवारें पास ही की खानों के अनगढ़ पत्थरों से बनाई गई हैं और यहाँ के क्षारीय वायुमण्डल में से नमी सोखने के कारण इन की प्राचीनता का रंग और भी धूमिल पड़ गया है जब कि चौकोर छतरियाँ, जिनकी बनावट बाहर की ओर स्पष्ट ढलान या 'तालस' लिये हुए है, जो केवल प्राचीन खण्डहरों में ही द्रष्टव्य है, सौन्दर्य और सुदृढ़ता की परिचायक हैं । परकोटे का घेरा तीन-चौथाई कोस माना जाता है, परन्तु मैं इसे पौने दो मील से कम मानने को तैयार नहीं हूँ। इसका पश्चिमी मुख, जो सब से छोटा है और प्रायः उत्तर से दक्षिण को दौड़ गया है, लगभग पांच सौ गज लम्बा है; दक्षिणी अथवा समुद्राभिमुख दीवार, जो सीधी. नहीं है और अंतिम दो सौ गज लम्बाई में उत्तर पूर्व की ओर मुड़ गई है, सब मिला कर लगभग सात सौ गज है तथा पूर्वीय प्राकार पाठ सौ गज के करीब है।' इन दीवारों की ऊंचाई कहीं पचीस और कहीं तीस फीट है और नींव पर इनका प्रासार सोलह फीट है। एक पचीस फीट चौड़ी और लगभग इतनी ही गहरी खाई (जिसको दीवारें चुनी हुई और प्राकार की भाँति ढलाव लिए हुए है) चारों ओर घूम गई है। इसको एक बढ़िया कृत्रिम जलप्रवाहक से इच्छानुसार भरा या खालो किया जा सकता है। मैंने सब मीनारों की गिनती तो नहीं की परन्तु प्राकारों की निगरानो और सुरक्षा के लिए उनकी संख्या पर्याप्त है; किनारों पर (कम से कम दक्षिणपूर्वीय कोण पर) ये पंचकोनी हैं और इनका मुख्य भाग नगर की ओर निकला हुआ है। इतिहास से हमें इस बात का पता नहीं चलता कि वाबन (Vauban) • का और नहरवाला के राजाओं का क्या सम्बन्ध था ? यदि एक मात्र यही प्राकार १ दुर्भाग्य से चोथी अथवा उत्तरी दीवार की माप मेरे जर्नल [नित्यलेख] में नहीं मिल रही है, परन्तु हम इसे पूरे छः सौ गज मान सकते हैं। २ वॉबन (Vauban) फ्रेंच सैनिक मोर इजीनियर था और स्पेन की सेना में नौकर था। उसने ३५ युद्धों का संचालन किया, ३३ नये किले बनवाये तथा ३०० जीर्ण दुर्गों का उद्धार कराया था। उसकी Dime Royal नामक पुस्तक १७०७ ई० में प्रकाशित हुई जिसमें कर-व्यवस्था का विवेचन है। उसी वर्ष लुई १४वें ने उसकी योजना को अस्वीकार कर दिया और उसकी मृत्यु हो गई।-N.S.E. p. 1259 यहाँ नहरवाला के राजामों की भग्न-इमारतों का जीर्णोद्धार कराने में रुचि से तात्पर्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy