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________________ प्रकरण - १६; दामोदर महादेव का मन्दिर [३४५ बुध के रूप में पूजते हैं) को अर्धाङ्गिनी सुन्दरी रुक्मिणी को इसकी पुजारिन बनाया गया है ? 'हिरण्य' के ठीक उस पार इस महान् विश्व के चक्षु और आत्मा के प्रतीक इसी मण्डलाकार के दूसरे मन्दिर का दृश्य पौराणिक सादृश्यों को प्रमाणित कर रहा है। अस्तु, मैंने सङ्गम पार किया, जहां दो छोटी नदियों का पानी 'हिरण्य' में मिल कर समुद्र की ओर सह-प्रवाहित होता है । यहाँ भक्तों के लिए कुछ मन्दिर और धर्मशालाएं बनी हुई हैं, जो विशाल प्रायद्वीप से आए हुए केवल उन यात्रियों के लिए ही आकर्षक हो सकती हैं जो पहली बार त्रिवेणी के सीमित अन्तस्तल में समुद्र द्वारा धकेली हुई विस्तृत लहरों के दृश्य को देखते हैं । इन सब को, जो मेरी यात्रा के उद्देश्य में सहायक मात्र थे, देख कर तथा जिसका मेरे पूर्व जीवन में तो पूरा साहचर्य रहा था परन्तु जिसके गुरु-गम्भीर गर्जन से सुदीर्घ बीस वर्षों तक अपरिचित-सा रहा और अब जिस जलराशि के भरोसे शीघ्र ही अपने आप को सौंपने जा रहा था उसी समुद्र को परमश्रद्धालु पाराधक के समान उत्साह से प्रणाम कर के मैंने सोमनाथ के मन्दिर की ओर चरण बढ़ाए। सूर्य-मन्दिर और बाल नगर के प्रवेश-द्वार के बीचोंबीच दामोदर महादेव के पास हो कर निकला, जिसका गायकवाड़ के दीवान विट्ठलराव ने, जिसके उदार, धार्मिक और वास्तव में उपयोगी कार्यों ने उसकी स्वयं को और सरकार की प्रतिष्ठा बढ़ाई है, आमूल पुननवीकरण करा दिया है और इसमें जो बात असाधारण (भारत में ही नहीं) है वह यह है कि अन्दर और बाहर से जो मरम्मत कराई गई है वह मल ढाँचे के अनुरूप है। यद्यपि यह मन्दिर दर्शनीय है, परन्तु सपरिश्रम विवरण लिखने जैसी कोई बात नहीं है। हाँ, इतना उल्लेख अवश्य करूंगा कि इसके एक बाहरो ढंके हुए पाले में जहाँ पहले 'सूखा माता', अकाल की देवी, की मूर्ति विराजमान थी वहाँ अब एक बड़ा प्रस्तर-खण्ड रखा है, जिस पर 'सैण्ट एण्ड्य' का क्रॉस बना हुया है। स्कॉटलैण्ड के इस रईस की सुदूर पूर्व में यहाँ तक की यात्रा के विषय में मैंने कभी नहीं सुना और शायद मेरा अनुमान गलत नहीं है कि यह पुर्तगालियों का कृत्य है, जिनके अधिकार में कभी यह पूरा समुद्री तट रहा था और जो सौराष्ट्र के प्रतीत गौरव के लिए स्वयं महमूद से भी बड़े शत्रु प्रमाणित हुए थे। यह बात नहीं है कि बहुत-सी तरह के क्रॉस-चिह्न हिन्दुओं में प्रचलित न हों और विशेषतः जैनों ने, जिनके सिक्कों और इमारतों पर मैंने ' स्काटलैण्ड का प्रोटेस्टेण्ट शहीद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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