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________________ ३४२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा __ इस गुफा से मैं उस स्थान पर गया, जिसको हिन्दू लोग परम पवित्र मानते हैं, जहाँ पर गोपाल-देव (Shepherd-god) परम धाम को गए थे। हम अन्यत्र इस यदु [यादव] राजकुमार के पूरे इतिहास का वर्णन कर चुके हैं, जो अपने जीवन-काल में ही देवता के समान पूजे जाते थे और कृष्ण अथवा (शरीर का रंग पक्का होने के कारण) श्याम के नाम से विष्णु का पूर्ण अवतार माने जाते थे तथा कन्हैया के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। अपने प्रात्मीय-जनों, कौरवों और पाण्डवों के गृह-युद्ध में उन्होंने पाण्डवों का पक्ष लिया था और वनवास-काल में भी उनका साथ दिया था। उस समय उन्होंने अपने मदनमोहन मुरलीधर-रूप को छोड़ दिया था जिससे वे मुरली (वंशी) बजा कर सूरसेन-देश के गोकुल में गोएं चराते हए गोपियों को मोहित किया करते थे और अब इण्डो-गेटिक (Indo-Geric) जाति के प्राचीनतम शस्त्र चक्र' को धारण करके चक्रधारी बन गए थे। यद्यपि इस अवसर पर वे सौरों के क्षेत्र में विजेता होकर ही प्रविष्ट हए थे, परन्तु उनका यह स्वरूप स्थायी नहीं था, क्योंकि इससे बहुत पूर्व उनको चेदि के राजा२ से डर कर भागना पड़ा और यहाँ आकर शरण लेनी पड़ी थी; और इसी कारण उनका अस्पहरणीय 'रणछोड़' नाम पड़ा था, जिसके विषय में पहले लिखा जा चुका है। परन्तु, उन्होंने कोई भी नाम धारण किया हो, उन्हें नए से नए भक्त और श्रद्धालु प्राप्त होते रहे और जो फाल्स्टाफ (Falstaff) के समान 'शौर्य के सर्वोत्तम स्वरूप, विवेक' में विश्वास करने वाले हिन्दू 'रणछोड़' नाम को भी प्रशंसात्मक ही मानते हैं, क्योंकि उनके इस विग्रह का पूजन करने वाले लोग भी बहुत बड़ी तादाद में हैं। परन्तु, मैं फिर कहता हूँ कि इस बार वे, भारत को उजाड़ कर देने वाले भयंकर घोर युद्ध में से बचे-खुचे कुछ संबंधियों के साथ अपनी आयु के शेष दिन, महत्त्वाकांक्षावश अपने स्वत्त्वों की रक्षा के लिए ही सही, रक्तपात से दुखी होकर पश्चात्ताप में बिताने के लिए हिन्दुओं के मतानुसार इस 'जगतकूट' स्थान पर आए थे। इस प्रकार अर्जुन, युधिष्ठिर (भारत का राजपद-मुक्त सम्राट्) और बलदेव आदि अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ की यात्रा करते हुए सोमनाथ मन्दिर के पासपास की पवित्र भूमि में पहुँचे । पवित्र त्रिवेणी में स्नान करने के उपरान्त १ भारत में अब सिक्खों के अतिरिक्त और कोई इस शस्त्र का प्रयोग नहीं करता । २ श्री कृष्ण चेदि के राजा से डर कर कभी नहीं भागे । जरासंध के आक्रमण पर भागने से ही 'रणछोड़' नाम पड़ा था। 3 शेक्सपीयर कृत 'हेनरी चतुर्थ' नाटक का विदूषक पात्र जो प्रत्युत्पन्नमति और विपत्ति से येन केन प्रकारेण टल निकलने की नीति में विश्वास करता था। ४ हमें मान लेना चाहिए कि इन भक्तों में राजपूतों की संख्या अत्यधिक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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