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________________ प्रकरण [ ३४१ की गुफा की कल्पना कर सकता है; यद्यपि हमारे इस अन्धे ओलिया की भवि यवाणियां उसके अन्य बन्धुनों की अपेक्षा अधिक कटु, परन्तु सत्य निकली थीं । प्रस्तु, कैसा भी भौंडा बना हुआ हो, यह 'रौरव श्रन्धनरक' का प्रतीक था । हिंगलाज माता' और पातालेश्वर की प्रतिमाओं के अतिरिक्त एक छोटे-से मण्डप की खुरदरी दीवार पर नौ छोटी-छोटी मूर्तियां स्पष्ट कुरेदी हुई थीं, जिनको अन्धे महन्त ने नवग्रह बताया था, 'जो मनुष्य के भविष्य का नियन्त्रण करते हैं ।' गुफा के सामने ही एक छोटा-सा भाँगन है, जिसकी दीवारों का जीर्णोद्धार कराया गया है अथवा उसको दूसरे टूटे-फूटे मन्दिरों के मसाले से चिनवाया गया है; इसके प्रत्येक भाग में देव मूर्तियों के टुकड़े मौजूद हैं। इस आँगन में बड़ के पेड़ छाए हुए हैं, जो शिवजी को बहुत प्रिय हैं। यद्यपि यहाँ पर कोई ऐसी श्राकर्षक वस्तु नहीं है फिर भी जो पुराणों का जानकार है, उसको लगेगा कि गुहामन्दिर की रचना पौराणिक आधार पर होने के अतिरिक्त, यहाँ पर प्रकाश और अन्धकार की शक्तियों के तारतम्य का भी प्रत्यक्ष अनुभव होता है और साथ ही, भक्त का एक वातावरण से दूसरे में तुरन्त प्रा जाना भी ध्यान देने योग्य बात है । - Jain Education International १६; पातालेश्वर 1 ' हिङ्गलाज माता को चारण लोग आद्या शक्ति का अवतार मानते हैं । लोकगाथाओं में यह चारण जाति की प्रथम कुलदेवी के रूप में कही गई है । इसका मुख्य स्थान बलोचिस्तान में है । कहते हैं कि पहले चारण लोग इसी की छत्र-छाया में बलोचिस्तान में ही बसते थे । बाद में, दक्षिण और पूर्व की ओर चल पड़े। कुछ वंश गुजरात-काठियावाड़ आदि स्थानों में बस गए और कुछ राजस्थान की ओर श्रा गए। जहां-जहां पर ये लोग बसे. वहां-वहां ही हिङ्गलाज के मन्दिर भी बनाते गए। इस प्रकार देश में इस देवी के अनेक मन्दिर हैं । बलोचिस्तान में (सिन्ध और अफगानिस्तान के बीच की पहाड़ियों में ) रमठ नामक स्थान पर एक वृक्षविशेष के रस को एकत्रित करते हैं, जो 'हिङ्ग' कहलाता है [ हिमं गच्छति = हिङ्ग : ] । ऐसे देश की निवासिनी होने के कारण ही सम्भवतः यह देवी 'हिङ्ग लाजा' कहलाई । रमठ स्थान में प्राप्त होने के नाते 'हिङ्ग' को 'रामठ' भी कहते हैं । कुछ विद्वानों का मत है कि हिङ्ग लाज माता के पिता का नाम कापड़िया था श्रीर उसका समय प्रायः सातवीं शताब्दी के आसपास का था । विक्रमीय आठवीं शताब्दी में सिन्ध के ही सांडवा चारण शाखा में उत्पन्न भादा के पुत्र मामड़िया [ मम्मट ? ] की पुत्री 'आवड़' को हिंगुलाज का अवतार मानते हैं । वास्तव में, समस्त विद्यात्रों की जननी महाविद्या 'महात्रिपुरसुन्दरी' का ही एक स्वरूप 'हिङ्गला' भी है । 'हिङ्ग ुला मङ्गला सीता सुषुम्णा मध्यगामिनी' - वामकेश्वरतंत्रगत महात्रिपुरसुन्दरीसहस्रनाम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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