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________________ ३४० ] पश्चिमी भारत की यात्रा अथवा अनुकूलता नहीं है । फिर भी, सब मिला कर इमारत प्रभावोत्पादक है। प्रवेश द्वार की चौखटें अच्छी तरह रोगन किये हुये पीले रंग के खनिज से बनी हुई हैं, जो देखने में सूर्यकान्त जैसी लगती हैं, यद्यपि यह चौखट प्राचीन पढ़ने योग्य संगमरमर की ही कोई किस्म होगी । मण्डप का व्यास सोलह फीट से अधिक नहीं है ; यह हल्की सजावट वाले सुदृढ़ खम्भों पर आधारित है और चारों ओर बरामदे से घिरा हुआ है, जिसके सिरे पर चौकोर खम्भे बने हुए हैं, जो बाहरी दीवार से प्राकर एक जगह मिल जाते हैं । मण्डप से आगे एक अलिंद है जिसकी छतरियां चौकोर और सीधे स्तम्भों पर टिकी हुई हैं; इसमें होकर निज-मन्दिर (गर्भ-गृह) में जाते हैं, जहां लाल रंग [सिन्दूर से गो-पालकों ने एक गोल निशान बना रखा है। अब वही सूर्य-देवता का एक मात्र चिह्न रह गया है । महमूद द्वारा की हुई क्षति की पूर्ति तो नहरवाला के सम्राटों ने करा दी थी परन्तु धर्मान्ध 'अल्ला' ने जिस शिखर को तोड़ कर फेंक दिया था वह अभी तक पुनः खड़ा नहीं किया गया है । मन्दिर के उत्तर में ठोस चट्टान को खोद कर बनाया हुआ सूर्य-कुण्ड है। इसमें उतरने के लिए छोटी-छोटी सैकड़ी सीढ़ियों की श्रेणी बनी हुई है। कहते हैं कि इसका पानो शारीरिक और मानसिक व्याधियों का शमन करने वाला है, परन्तु स्नान और परीक्षण की अवधि पूरे एक सौर वर्ष की रखी गई है, जिसमें पूर्ण श्रद्धा के साथ अन्यान्य सत्कार्य भी करना आवश्यक है, तभी यह उपचार अधिक प्रभावशील हो सकता है । हमें बड़ी गम्भीरता के साथ बताया गया कि जिन लोगों पर भगवत्कृपा नहीं होती उनकी पहचान इस प्रकार हो जाती है कि 'जितनी चांदी के साथ लाये होते हैं वह सब तांबे में बदल जाती है।' इससे ये नतीजे निकाले जा सकते हैं कि पूर्ण श्रद्धालु व्यक्ति को इस जल का आचमन करने से पूर्व अपनी समस्त चांदी सूर्य देवता के पुजारी को दे देनी चाहिए; दूसरा यह कि जो लोग अपनी नकदी अपने साथ रखते हैं उनको यह समझाया जाता है कि वह सब, उनके पापों के कारण, न कि पानी की गन्धकाम्लवत्ता के कारण, तांबे में परिवर्तित हो जाती है । 'प्रकाश के देवता के मन्दिर से उतर कर में सिद्धों के आराध्य सिद्धेश्वर के मन्दिर में आया जो एक अन्धेरो चट्टान को खोद कर बनाया गया था। वह अन्धकारपूर्ण और नम था तथा उसकी नीची छत टूटे-फूटे खम्भों पर किसी तरह टिकी हुई थी। कोई भी आदमी इसको देख कर डॅल्फॉस (Delphos) • - -- • ग्रीस का Delphi (डॅल्फो) नगर जहाँ प्रसिद्ध भविष्यवाणी होती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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