SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा महादेव के मन्दिर के पास होता हुआ मूल द्वारका के पवित्र पर्वत के समीप समुद्र में जा गिरता है । मूल द्वारका के पास इसका वेग बढ़ कर उसको टापू जैसा बना देता है । हिन्दुओं और विशेषतः वैष्णवों के लिए उस भूमि का चप्पा-चप्पा पवित्र है क्योंकि वे इस स्थान को, अपने अपकीर्तिकर विग्रह रणछोड़ रूप में पूजित, कन्हैया के अवतार से भी बहुत पूर्व से ही, मूल द्वार अथवा देव-भूमि का प्रवेश-द्वार मानते आए हैं। मूलतः यह प्रतिमा कच्छ की खाड़ो के मुख भाग पर बेट (Bate) द्वोप के मन्दिर में प्रतिष्ठित थी, परन्तु १४०० वर्ष हुए यह वहाँ से हटा ली गई है और ब्राह्मणों ने मूल रणछोड़ नाम की प्रसिद्धि से बहुत लाभ उठाया है । हिन्दू लोग गायकवाड़ के दीवान की धार्मिकता के प्रति भी बहुत आभारी हैं, जिसने नये मन्दिर का निर्माण करा कर उसमें सोमनाथ के एक बहुत प्राचीन लिंग की स्थापना की है। इन दोनों ही देव-प्रतिमानों का पूजन करने के लिए 'आखा तीज' [ प्रक्षय तृतीया] अथवा वैशाख मास की तृतीया को बहुत बड़ी भीड़ लग जाती है । यहाँ से कोई बारह कोस की दूरी पर एक और पवित्र स्थान है जो 'गोपति प्रयाग' (Gaopati Prag) कहलाता है; यहाँ एक पानी के सोते से निकल कर लघु झरना बहता है, जो गंगा के पवित्र नाम से प्रसिद्ध है । यहीं पर सन्यासियों का एक मन्दिर है जिनका निर्वाह इसके जल में स्नान करके पवित्र होने वाले यात्रियों की श्रद्धा पर निर्भर है। कोरवाड़ का धार्मिक एवं राजनैतिक दोनों हों दृष्टियों से महत्व है क्योंकि यह चौरासी (गांवों के) परगने का मुख्य स्थान है । शूद्र पाड़ा - नवम्बर २८वीं - यह सोलह मील की चित्ताकर्षक यात्रा बड़ी अच्छी सड़क पर मनोरञ्जक प्रदेश में हुई, जहाँ हमने पहाड़ी भूमि के दरिद्र झोंपड़ों को छोड़ कर कोरवाड़ के मैदानों में कृषकों के सुखद आवासों की भूमि में प्रवेश किया; सौराष्ट्र के पहाड़ी इलाके में उलझी हुई झाड़ियों, विषम चट्टानों और अजस्र प्रवाही भरनों के बीच भूरे रंग का परिधान पहिने प्रकृति से बातें करना कितना ही सुखप्रद क्यों न हो, परन्तु इस दृश्य का जन-संकुल श्रौर सभ्यतापूर्ण पक्ष में बदल जाना भी कम आनन्ददायक नहीं है । झगड़ालू, लुटारू और शिकारी प्रवृत्ति के लोगों को देखते-देखते मस्तिष्क में थकान- सी होने लगती है । यद्यपि मैदान में प्रवेश करने पर हमने देखा कि हल की फाल ने तलवार को बहिष्कृत कर दिया है फिर भी यहाँ के लोगो में अभी पर्याप्त मात्रा में सैनिक प्रादतें बनी हुई हैं, जो इनको निस्तेज नहीं होने देतीं । कैसा भी गांव हो, उसकी सुरक्षार्थं बनी काली चौकोर बुर्जे सगर्व खड़ी हुई हैं और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy