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प्रकरण
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यद्यपि मुसलमानों की मसजिदें और मज़ारें अब सूनी पड़ी हैं, परन्तु वे उनके साम्राज्य के विरुद्ध हुए प्रत्येक झगड़े की साक्षी दे रही हैं। हम कुछ ऐसे ही गांवों में होकर गुज़रे जैसे सिंगुर, लोदवा, पछनोरा और मुख्य शूद्रपाड़ा, जिसका समुद्री तट पर पत्थर की पूठियों से बना दुर्ग बहुत श्रादरणीय है । यहाँ के निवासी मुख्यतः अहीर, गोहिल और केरिया जाति के हैं; इनमें से हीर विशुद्ध चरवाहे हैं और अन्तिम जाति के लोग यद्यपि अपने नाम के अनुसार राजपूत हैं परन्तु अब व्यवसाय से कृषक हैं— श्रोर, निःसंदेह उनकी फसल बहुत अच्छी थी ।
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१५; शूद्रपाड़ा
शूद्रपाड़ा के तट और नगर के बीच में एक अपूर्व सूर्य-मन्दिर है, जिसमें इस सुन्दर भू-भाग में एकदा मान्यता प्राप्त सूर्यदेव की प्रतिमा विराजमान है । वह मूर्ति अब अपनी रश्मिराशि से वियुक्त होकर इतनी बदल गई है कि ईसा के पवित्र दश श्रादेशों में से दूसरे अध्याय के अन्तर्गत जो वर्णन आया है उससे शायद ही मेल खा सके । ग्रीकों के विश्वदेवतानों के समान प्रत्येक हिन्दू देवता के पराक्रमों में उसकी सहधर्मिणी भी भागीदार होती है और तदनुसार यहाँ भी एक पुतली अथवा 'रेणादेवी' की मूर्ति उसके स्वामी के पास प्रतिष्ठित है । जहाँ जहाँ सूर्य मन्दिर हैं वहाँ एक पानी का कुण्ड भी होता है । यहाँ के कुण्ड पर एक शिला - लेख है, जिससे केवल इतना ही पता चलता है कि चार सौ वर्ष पूर्व इसका जीर्णोद्धार कराया गया था । इसके पास ही नवदुर्गा का मन्दिर है, जिसमें छोटी-छोटी नो मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं । मन्दिर से पूर्व की ओर थोड़ी दूर पर एक और कुण्ड है, जो प्राचीन ऋषि च्यवन (Chowun) के नाम से प्रसिद्ध है ।
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उत्तर में कोई सात मील की दूरी पर एक स्थान प्राची नाम से प्रसिद्ध है. जो सरस्वती नदी का उद्गमस्थान होने के कारण बहुत पवित्र माना जाता है और यहाँ यात्रियों की भीड़ भी लगी रहती है। इसके किनारे पर ही 'मधुराय' का मन्दिर है, जो भारतीय 'अपोलो' का ही एक रूप माना गया है; इसके विषय में कहते हैं कि यद्यपि यह निर्भर अपने किनारे पर स्थित देव-प्रतिमा को जलनिमग्न करने के लिये निरन्तर जूझता रहता है परन्तु वह मूर्ति अपने ही स्थान पर सुस्थिर बनी रहती है । इसी स्थान पर 'लुटेश्वर' अर्थात् लूट-पाट के देवता का छोटा-सा मन्दिर है, जिसकी इन भागों में बहुत मान्यता है । इस देवता को लोग शिव का ही स्वरूप मानते हैं, परन्तु मैं समझता हूँ कि इसको 'मरकरी' अथवा बुध ग्रह मानना अधिक संगत होगा जैसा कि आगे चल कर विदित होगा कि इस ग्रह में समुद्री डाकुओं का, जो इस तट पर श्रादिकाल से छाए हुए हैं, संरक्षण करने का गुण है । पूजा और यातायात सम्बन्धी मेले, बो
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