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प्रकरण - १५; ईमानदार रेवारी
[ ३३५ हुई है, और किसी को दूध नहीं देती।' फिर, उसने जिस गाँव में हम पहुँचने वाले थे उधर ही एक झोंपड़ी की ओर इशारा करके कहा, 'परन्तु कोई बात नहीं, वहाँ मेरा भानजा है, आप केवल आवाज लगा दीजिए, वह आ जायगा।' यह कह कर विदाई की सलाम कर के वह घर की ओर चल दिया, परन्तु कुछ कदम चल कर वह फिर लौटा और उसने मुझ से प्रार्थना की कि उसे कभी न भूलूं। मैंने कहा 'मैं कभी नहीं भूलूंगा' और अब भी उस बाबरियावाड़ के ईमानदार किसान से की हुई प्रतिज्ञा को याद करता हूँ। एक और भी ग्रामीण को मैंने देखा जो अपनी रोटो में से तोड़ कर दूसरे को हिस्सा देने का पूर्ण अाग्रह कर रहा था। इन्हीं बातों के आधार पर और इनके चेहरों पर झलकते सन्तोष को देख कर ही (क्योंकि मैं सदा से लॅबटर (Lavater)' का अनुयायी रहा हूँ) मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि इन लोगों का रहन-सहन और स्वभाव इनके व्यवसाय के अनुरूप है। मैंने अपने मार्गदर्शक के भानजे को आवाज़ दी जिसको सुन कर वह 'मीठिया की ढाणी' में से निकल कर आया, परन्तु हमारी यात्रा का लक्ष्यबिन्दु कोरवार सामने ही दिखाई पड़ रहा था इसलिए मैंने उसे वापस अपने काम पर भेज दिया और वृत्ताकार छतरियों तथा समाधि के पालियों (चबूतरों) को अपने दाहिनी बाजू छोड़ते हुए हम आगे बढ़े। ये बुर्जे, जो गांव को सुरक्षा के लिए बनाई गई प्रतीत होती हैं, इस क्षेत्र के दृश्यों में विशेष महत्व की वस्तुएं बन गई हैं । ये प्रायः दो-दो मंजिल ऊँची हैं अथवा यों कहें कि बत्तीदार बन्दूकें छोड़ने के लिए बने छिद्रों के दो-दो घेरे इन पर बने हुए हैं। कुछ पर साधारण मिट्टी की छतें हैं और कुछ पर नासमझी से फस के छप्पर डाल दिए गये हैं, जिनको यदि आग लगा दी जाय तो रक्षार्थियों के लिए कोई भोट ही न रहेगी।
कोरवार से एक मील इधर हमने सौराष्ट्र में अब तक देखे हुए झरनों में से सर्वश्रेष्ठ झरने को पार किया, जो सिंगोरा (निकुन्ती भी) कहलाता है; इसका निर्मल जल सुन्दर सपाटों के बाद कंकड़ीले पेटे में गिरता है और इसके किनारे पवित्र वट-वृक्षों के झुरमुटों से घटाटोप हो रहे हैं। मैं घोड़े से नीचे उतर कर डेरे तक पैदल ही गया; डेरे के पीछे ही कोरवार का किला खड़ा है और झरने के किनारे पर ही रणछोड़ का मन्दिर है। यह झरना चिरचेई (Chirchae) नामक पर्वत श्रेणी से निकल कर उत्तर में छ: मील दूर रुद्र
' ज्यूरिच (फांस) का रहने वाला सुप्रसिद्ध आकृति-विज्ञान का विद्वान् । उसका समय
१७४१-१८०१ ई० का है।
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