SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा व्यक्तिगत प्रार्थना ही थी कि उसकी गायें दूध के अजस्र झरने बहाने वाली हों । यह स्थान 'प्रदिपुष्कर' कहलाता है; मुझे आज ही ज्ञात हुआ कि इस नाम कोई बारह तीर्थ-स्थान हैं । भारतवर्ष में बाईस वर्ष रह कर मैंने जिन क्षेत्रों को देखा है उनमें हरियाणा को छोड़ कर यही एक ऐसा है, जिसको मैं विशुद्ध पशुपालन क्षेत्र कह सकता हूँ; और मुझे यह देख कर प्रसन्नता हुई कि यहाँ के निवासियों में वही सादगी मौजूद है जो इस प्रकार के जीवन से सम्बद्ध मानी जाती है । इन समृद्ध और विस्तृत मैदानों में बसने वाले पशुपालक रैबारी कहलाते हैं; इस अभिधान से उत्तरी भारत में प्रायः ऊँट चराने वाले अथवा उनकी रक्षा करने वाले लोगों का बोध होता है । यहाँ इस शब्द से चरवाहे अथवा गडरिया का व्यवसाय करने वाले का ही अर्थ लिया जाता है और इनकी बहुत सी जातियाँ होती हैं-वर्ग कहूं तो अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि बहुत से वंश-परम्परा के अध्येताओं ने भी कहा है कि उनमें हूणों का सम्मिश्रण है । इन सुन्दर चरागाहों में हमने ग्रानन्द से चरते हुए जानवरों के tus के झुण्ड देखे । प्रकृति, सुन्दरता और शक्ति में भारत के किसी भी भाग के जानवर इनसे बढ़ कर नहीं हैं - यहाँ तक कि हरियाना में भी, जहां मैंने कर्नल स्किनर के खेत में गो वंश के ऐसे - ऐसे चित्र देखे थे, जो एक अनुभवहीन दर्शक की दृष्टि में भी उसी पूर्ण प्रशंसा के पात्र थे जिसके लिए अच्छी से अच्छी नस्ल के घोड़े अधिकारी हुग्रा करते हैं; और वास्तव में, उनके मस्तक अरबी घोड़ों की तरह एक समान थे और आँखें (भारत में जहाँ इनकी पूजा होती है, ऐसा कहना धृष्टता होगी) समझदारी से भरी हुईं तथा सभी अङ्ग-प्रत्यङ्ग सुन्दर एवं सुगठित थे। इनका तुलनात्मक मूल्याङ्कन इनसे प्राप्त होने वाली कीमत के आधार पर किया जाता है। गायें दस से पन्द्रह डॉलर प्रत्येक के मूल्य पर बिकती है और चार साल के बैलों की जोड़ी प्रायः चालीस डॉलर में मिल जाती है; यहाँ डालर से तात्पर्य रैबारियों द्वारा प्रयुक्त विनिमय मुद्रा से है । मैं कह चुका हूँ कि इस जाति के लोग ईमानदार और सीधे होते हैं; मैं अपने इस निष्कर्ष के आधारभूत उदाहरण देता हूँ । मेरा मार्गदर्शक स्वयं एक पशु-पालक है । वह सभ्य, विनम्र और समझदार | जब चौदह मील तक वह मेरे साथ चल लिया और सामने ही गाँव दिखाई देने लगा तो मैंने चाहा कि वह अपने गाँव लौट जाय- इसलिए मैं उसे कुछ चाँदी के सिक्के देने लगा | परन्तु उसने लेना अस्वीकार कर दिया और कहा, 'मैं तो राजी राजी पूरे रास्ते आपके साथ चलता, परन्तु एक भैंस मेरे ही हाड़ हिली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy