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________________ प्रकरण - १५, कोरवार [ ३३३ प्रबल हो जाता है कि कोली सरदार का गाँव और कुछ अन्य बस्तियां (जो जूनागढ़ के आधीन हैं) बहुत से लोगों की मृत्यु हो जाने अथवा स्थान छोड़ कर चले जाने के कारण ऊजड़ हो गई हैं । हम यहाँ समुद्री तट पर स्थित ऊना से छ: मील की दूरी पर हैं। ____ कोरवार (Kowrewar) नवम्बर २७ वीं- इस मंजिल के दस कोस इक्कीस मील के बराबर निकले । कैसा आनन्ददायक परिवर्तन था ! हम तुलसी श्याम से चल कर बाबरियावाड़ के ऊसर, अस्वास्थ्यकर और पहाड़ी इलाके से निकल कर आज नोसगेर (Nosgair) जिले में पहुंच गये थे और वहाँ की हरी-भरी भूमि पर चल रहे थे । पहले चार मील तक एक उपेक्षित सड़क है जिस पर पीले, सछिद्र अथवा कृमिसंकुल कंकड़ बिखरे हुए हैं, जिनमें चमकीले पत्थर के दाने भी अधिकता से मिले हुए हैं। जहाँ जहाँ जमीन बिना ढकी हुई थी वहाँ वहाँ इसकी किस्म इसी जात की मालूम हुई, जिस पर लहरदार रेखायें बनी हुई थीं मानो 'असंख्य सर्प इस पर ये लकीरें बनाते हुए इधर से उधर निकल गए हों। इन हरे-भरे मैदानों में प्रवेश करने के थोड़ी देर बाद ही हमने रूपनी अथवा 'काच सदृश' नदी को पार किया, जिसका स्वच्छ और गहरा पानी एक सँकड़े पेटे में सीमित था और जिसके किनारे-किनारे घनी वनस्पति उगी हुई थी। इसके बाद शीघ्र हो हमने संगवरी (Sangavari) और गौरीदर के पास दूसरी मच्छन्दरी को पार किया। यहाँ पर पैंसिल से काम करने के लिए बहुत अच्छा अवसर है। गांव के ऊपर हो किला और चौबुर्जे बने हुए हैं, जो एक चट्टान पर स्थित हैं, वे काल-कम से काले पड़ गए हैं और पहाड़ी तथा घाटी से ऊपर निकल कर चौकसी करते हुए-से प्रतीत होते हैं । एक ओर गिरनार के शिखर हैं, दूसरी ओर समुद्री तट पर बसे हुए शहर हैं, जिनकी चट्टानी परिधियों के कारण समुद्री दृश्य आँखों से परोक्ष रहते हैं । दोपहर के लगभग हमने इस यात्रा में जामुनवाडा और भील नामक गाँवों के बीच विजयनाथ महादेव के मंदिर के खण्डहरों में विश्राम किया। यह मन्दिर एक छोटे से झरने के किनारे पर एकान्त स्थान में बना हुआ है। इसका प्रवेशद्वार तो अभी खड़ा है और निज-मन्दिर भी, जिसमें देवता का लिङ्ग स्थापित है, साधारण स्थिति में सुरक्षित हैं, परन्तु मण्डप अथवा मन्दिर का शरीर टूट कर ढेर हो गया है। स्थान के अनुरूप हो यहाँ का प्रबन्धक पुजारी एक दरिद्र मुर्दे की सी शकल वाला कोढ़ी जोगी था, जो तमाखू के पत्तों की गड्डी को धूप में सुखा रहा था। मेरे रैबारी मार्गदर्शक ने तुरन्त ही शिवलिङ्ग के आगे साष्टाङ्ग दण्डवत की और प्रार्थना का उच्चारण किया; सम्भवत: यह उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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