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________________ ३३२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा कर पहाड़ी पर दौड़ गई । ग्रीस के देवताओं की भाँति हिन्द के देवताओं का कोप भी कभी निष्फल नहीं होता; अतः वह ओंधाया हुआ चावलों का पानी {मांड] उपयोग करने वालों को पवित्रता और स्थिर बुद्धि देने वाला अमर झरना बन गया। इस कथा के प्रमाणस्वरूप ये लोग अब भी सीता-कुण्ड के किनारे पर मण्डप-स्थित रुक्मिणी की प्रतिमा की प्रार्थना करते हैं । __ यह एक अलग ही जंगली स्थान है, जो एक बड़े यात्री-संघ के लिए अत्यन्त सीमित है। हमारे इस प्याले में घोड़ों, पैदल और गाड़ियों की भीड़ ने ऐसी हलचल मचा दी थी जो ऐसे एकान्त स्थान के लिए बिलकुल अनुरूप नहीं थी। इस कुण्ड में से एक निकास-नाले द्वारा अतिरिक्त पानी बाहर निकलता है और यही एक छोटे से झरने का उद्गम स्थान है, जिसके किनारे-किनारे खजूर आदि के पेड़ उगे हुए हैं । यह नाला ऊबड़-खाबड़ और टूटी हुई चट्टानों में होकर टेढ़ीमेढ़ो चाल से बहता है और यहाँ के सुन्दर दृश्यों में कितनो ही कल्पनाओं का सृजन करता है। दोहन-नवम्बर २६वीं-पन्द्रह मील तक हम बहुत रद्दी रास्तों से चलते रहे (यदि उन्हें रास्ता कहा जाय तो) परन्तु वास्तव में रास्ता था ही नहींवह तो ऐसा कर्कश मार्ग था जिसमें दृश्य की भी कोई सुन्दरता बच नहीं पाई थी। अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की तरह इसको देख कर कोई प्रसन्न भले ही हो ले परन्तु, रामणीयकता के नाते कोई भी इस यात्रा को दोहराने की इच्छा नहीं करेगा। इस क्षेत्र को हमारे मानचित्रों में बहुत ही अशुद्धता से दिखाया गया है और प्रशासनिक खण्डों तथा नदी-विज्ञान का चित्रण तो अत्यन्त दोषपूर्ण है; परन्तु भूलें बताना उनमें सुधार करने की अपेक्षा सरल है और मेरा स्वास्थ्य यहाँ का सर्वेक्षण करने के श्रम को सहन नहीं कर सकता। इस पर मैंने अपने समय में खूब ध्यान दिया था, परन्तु यदि मैं स्वस्थ होता तो इस आकर्षक क्षेत्र के प्राकृतिक एवं राजनैतिक लक्षणों को सूक्ष्मता से चित्रित करने के अतिरिक्त मेरे ध्यान में और कोई ऐसा कार्य नहीं है कि जिसमें पूर्ण मनोयोग करने से मुझे अधिक प्रात्म-सन्तोष होता । दोहन से दो मील इधर ही हेतिया गाँव में हम पहाड़ियों के पार हो गए । हेतिया दो सुन्दर, चौड़े और वनस्पति-संकुल झरनों के बीच में बसा हुआ है। इन दोनों ही झरनों को हमने पार किया। एक का नाम मच्छन्दरी है जिसकी स्वच्छ सतह पर हलू के झाड़ों और सरपत की घनी परछाँही पड़ रही थी, फिर भी जल का विस्तृत दृश्य स्पष्ट देखने को इसका विस्तार पर्याप्त था। दोहन नदी का पानी विशेष रूप से प्रस्वाथ्यकर और जलोदररोग-कारक माना जाता है । कहते हैं कि कुछ ऋतुओं में यह इतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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