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________________ प्रकरण १५; तुलसीश्याम [ ३३१ के कारण प्रसिद्ध है । यह दैत्य सभी पवित्र और धार्मिक लोगों के लिए भय का कारण बना हुआ था; वह किसी भी घातक अमोघ शाखा से मृत्यु को न प्राप्त होने का वरदान प्राप्त कर स्वयं देवताओं को ही अपमानित और पीड़ित करने लगा था; परन्तु, उसे यह पहले ही जता दिया गया था कि श्रीकृष्ण के प्रव तार से सावधान रहे क्योंकि वह उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है । श्रौर, उपाख्यान में कहा गया है कि जब वह अपने विजेता के चरणों में पड़ा अन्तिम साँसें गिन रहा था तो उसने अन्तिम अभिलाषा यह प्रकट की कि उसका नाम उसके शरीर के साथ ही नष्ट न हो जाये, इसीलिए विजेता और विजित के संयुक्त नाम से यह क्षेत्र 'तुलसी- श्याम' कहलाता है । इस दानव का निवास एक जङ्गली घाटी में है, जो चारों ओर पहाड़ियों से घिरी हुई है; यह कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि यह एक विशाल प्याले के समान है जिसकी दीवारें वनस्पति से ढकी हुई हैं और इसके पैदे में एक सीताकुण्ड अथवा गरम पानी का कुआ है, जो बड़े प्राश्चर्य की वस्तु है । एक कुण्ड ऐसा पानी एकत्रित करने का है जो बहुत सी व्याधियों के उपचार में लाभदायक माना जाता है । ऊपर के सिरे पर इसकी लम्बाई अस्सी फीट और चौड़ाई पैंतालीस फीट है; फिर एक सोपान - पंक्ति इसके पैंदे की ओर उतरती है, जहाँ इसकी लम्बाई चौड़ाई कम होकर पचपन और वीस फीट रह जाती है । मेरा मन इसमें स्नान करने को हुआ । पानी का तापमान बाहरी हवा से २१ ऊपर था प्रौर वह प्रसह्य रूप से उष्ण था । इस समय डेरे ( तम्बू) में थर्मामीटर ८६° बता रहा था और बाहर केवल ८६ । कुण्ड में थोड़ी देर डुबोए रखने पर यह ११०° पर चढ़ गया और बाहर निकालते ही ७६° पर आ गया; फिर तेजी से वह बाहरी तापमान को ८६° बताने लगा । • यहीं पर श्याम देवता का एक छोटा और भोंडा-सा मन्दिर है, जिसके भीतरी भाग में स्वास्थ्यप्रद जल के अधिष्ठातृ देवता की प्रतिमा विराजमान है । अहाते के फाटक पर ही युद्धप्रिय शिव और भैरव के भी मन्दिर बने हुए हैं । यदि हम यहाँ के लोक-प्रवाद को स्वीकार करें तो यह लगेगा कि गरम पानी का झरना तूल दानव के जीवनकाल में विद्यमान नहीं था । युद्ध के उपरान्त भूखे और थके श्याम अपनी प्रिय पत्नी रुक्मिणी के कोमल हाथों से बने पाक की श्रातुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे । रुक्मिणी चावलों का भात बनाने में व्यस्त थी। इतने ही में भूख से उत्तेजित हो श्याम ने कुछ ऐसे वाक्य कहे जो रुक्मिणी को सहन नहीं हुए और वह उबलते हुए चावलों के पात्र को उलट कर अपने भूखे और उद्विग्न पति को 'भावना के खट्टे मीठे स्वाद' लेने के लिये वहीं छोड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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