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प्रकरण - १५, गढ़िया का ठाकुर; मार्ग के प्राकर्षण [३२६ समान श्वेत हो जाता है कि जिससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि इसका मार्ग चूनाबहुल चट्टानों पर होकर है। हमारे कुछ सिपाहियों ने, जो कभी काठियों के विरुद्ध इधर आए थे, मुझे इस पानी के विशेष प्रस्वास्थ्यकर होने के विषय में बताया। परों की सी शकल के झोव (Jhow) के पेड़ बहुत बड़ी तादाद में इस झरने पर झुके हुए थे; किनारे पर छाए हुए अन्य बहुत से वृक्षों में वृहदाकार 'टेंडू' को में तुरन्त पहचान गया। ___ इस टेढ़े-मेढ़े और चित्ताकर्षक मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शक एक बढ़िया घोड़ी पर सवार था । जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं वह गढ़िया का काठी सरदार तो था ही, परन्तु उसमें मनुष्यता की भी कमी नहीं थी; रास्ते भर वह लोककथाओं से हमारा मनोरञ्जन करता रहा और ऐसा कोई भी स्थल नहीं बताया जो किसी मर्मस्पर्शी कथा से सम्बद्ध न हो। जब हम हमारे रास्ते के बाँई ओर नदी के किनारे पर खुले पत्थरों के एक पालिये [समाधिस्थल] के पास से निकले तो उसने ठंडी साँस लेकर कहा, 'यहाँ जब बाबरिया झगड़ा करने पाए थे तो मेरा भाई काम आया था; उसकी मृत्यु से पुराना वैर चुक गया था।' ज्योंही वह घुमक्कड़ ठाकुर रास्ते में पड़े हुए एक लकड़ी के लट्ठ के पास होकर निकला तो उसकी घोड़ी भड़क गयी, इस पर उसने बड़ी निर्दयता से उसके चमड़े के चाबुक लगाए । जब वह उसको काबू में ले आया तो मैंने कहा, 'मैं समझता था कि तुम काठी लोग अपनी घोड़ियों को अपने बच्चों की तरह समझते हो और उनसे दयापूर्ण व्यवहार करते हो !" उसने कहा, 'यह ठीक है, परन्तु जैसे पाप और मैं जानते हैं उसी प्रकार यह घोड़ी भी जानती है कि यह लकड़ी का लट्ठा है।' यह कह कर वह अपनी घोड़ी को उसकी नासमझी पर झिड़कने लगा जैसे वह सब कुछ समझती हो । उसका गाँव गढ़िया जूनागढ़ में है, परन्तु गायकवाड़ उनसे चौथ वसूल करता है। यह एक घृणित प्रकार का कर है जो बन्द होना चाहिए और जब तक यह बन्द नहीं होता तब तक काठी न शान्त होकर बैठेंगे न उन्हें बैठना ही चाहिए ।
जैसे जैसे हम अपनी यात्रा में गन्तव्य स्थान के समीप-समीपतर पहुँचते थे वैसे ही इस भूमि का कदम-कदम सन्दर्भ-गर्भित मिल रहा था। इसी जंगली प्रदेश में, जो निश्चित रूप से 'हिडम्बा-वन' के नाम से प्रसिद्ध है, वनवासी पांडवों ने यमुना के सुरम्य तट से निर्वासित होने पर शरण ग्रहण की थी; और, यदि कम से कम अनुमान लगाया जाय तो भी इस घटना को घटे तीन हजार वर्ष बीत चुके हैं, फिर भी हिन्दू मानव का मन इसके महत्व एवं व्यापक प्रभाव से इतना व्याप्त है कि इस भूमि का प्रत्येक स्थल, जहाँ उनके दुःखों का प्रशमन
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