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________________ ३२८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा जातियों में अन्तर बताने वाले गुणों का सूक्ष्म विश्लेषण करते हए कैप्टेन (कप्तान) मैकमुरड़ो (Captain Mac Murdo) ने राजपूत और काठी के बीच एक रेखा खींची है, जो किन्हीं अंशों में ठीक हो सकती है, परन्तु ऐसे अवसरों पर जैसा कि ऊपर कहा गया है, जब वे हमें एक ही गैर-कानूनी उद्देश्य के लिए सम्मिलित दिखाई पड़ते हैं तो इनमें स्पष्ट विभाजन रेखा को ढूंढ़ना अत्यन्त बारीक नज़र का ही काम होगा; पोशाक, रंगढंग, भोजन, विश्वास और सोचने के प्रकारों में वे समान हैं-केवल एक छाया, नाम मात्र का हो अन्तर उनमें होता है। तुलसीशाम-नवम्बर २५वीं-सौराष्ट्र के पहाड़ी भागों में जो अनुमानित दूरी अथवा कोस माने जाते हैं उनमें और देशी कोस अथवा गांव-कोस में वास्तविक अन्तर है क्योंकि गढ़िया से यहाँ तक दस या ग्यारह मील के बजाय जो सात कोस के बराबर होते-हम पूरे सोलह मील चले आये; फिर भी हम थके नहीं और न इन विभिन्न प्रकार का सौन्दर्य लिए हए दृश्यों में किसी को रुचि के बहाने अपने आपके बारे में सोचने का ही अवसर मिला । पहले दो मील तक तो पठार पर चलना पड़ा जिसमें भी थोड़ी सी चढ़ाई अवश्य थी परन्तु दोनों ओर प्रहरी के समान खड़े शिखरों के बीच से निकलने के बाद जंगलों में होकर उतराई शुरू हुई । शेष यात्रा का वर्णन में इससे अच्छा नहीं कर सकता कि हम एक के बाद दूसरी पृथक् वन-संकुल और परिमित लम्बाईचौड़ाई वाली रंगभूमि में से गुजरे जो कि थोड़ी ऊंचाई वाली क्रमहीन पहाड़ी चोटियों से घिरी हई थीं। अमरेली के मैदानों से पठार तक की चढ़ाई क्रमिक है परन्तु यात्री को इस ऊबड़ खाबड़ और द्रुत अवरोह से ही शत्र जय और गिरनार के महान् शिखरों को संयुक्त करने वाले पर्वतीय भाग की ऊँचाई का ठीक ठीक ज्ञान हो सकता है। आज के दिन की मंजिल में बैरोमीटर ने पूरे पांच सौ मील का उतार दिखाया । गढ़िया छोड़ने के बाद झरनों का बहाव दक्षिण को प्रोर देख कर ऊँचाई का मध्यबिन्दु स्पष्टतया लक्षित हो जाता था क्योंकि यहाँ तक वे शत्रुञ्जय की पोर पश्चिमी ढाल पर बह रहे थे । महत्वपूर्ण स्थिति के कारण ये झरने सौराष्ट्र के भूगोल में अधिक ध्यान देने योग्य हैं। हमारे बायीं ओर वनाच्छन्न एक हो घाटो में दौड़ती हुई 'काली गढ़िया' और ऊना में समुद्रसंगम के लिए अग्रसर हो रही 'दूधिया रानला' का, जिसके इस पार और उस पार हमको चार बार आना जाना पड़ा था, अन्तर यहाँ स्पष्ट दिखाई पड़ता था। मैंने रानला के लिए दूधिया शब्द का प्रयोग इसलिए किया है कि ज्यों ही इसके चूनामिश्रित पेटे में हलचल हुई कि इस स्वच्छ झरने का जल दूध के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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