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प्रकररण १५ काठी सरदार का निवास
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धीरे-धीरे बहते हुए शत्रुञ्जय नदी में जा मिलते हैं । घनी वनावली में थोड़ीथोड़ी दूर पर झोंपड़ियाँ भी दिखाई देती हैं, जो यह बताती हैं कि ऐसे स्थानों पर भी मनुष्यों का अभाव नहीं है, जो किसी डकैत के लिए पूर्ण स्वर्ग के समान हो, जहाँ किसी छायादार बड़ या पीपल के नीचे वह अमल की पोनक में मानन्द लेता रहता है अथवा किसी कुनबी किसान के काम की देखभाल करता रहता है, जो उस भूमि में खेती द्वारा रोटी पैदा करता है । वहाँ भी जहाँ-जहाँ रेतीली भूमि है वह नीचे के मैदानों जैसी ही समृद्ध दिखाई देती है । सुदूर नील गगन में पहाड़ी चोटियाँ दृष्टिगत होती हैं; भ्रमरेली में गौरवगिरि गिरनार का एक ही क्रमबद्ध शिखर दिखाई पड़ता था, उसके वजाय यहाँ से पाँच शिखरों का स्पष्ट दर्शन होने लगा । गढ़िया पहुँचने पर काठी सरदार के निवास की सुन्दर छबि देखने को मिलती है; अनगढ़ पत्थरों से बनी वर्गाकार काली छतरीइसकी सन्धियाँ नुकीली चट्टान पर टिकी हुई, चारों ओर नीचे की तरफ रक्षा के लिए बने कच्चे घरों की टेढी-मेढी लहराती हुई पंक्तियाँ और यह सब दृश्य वटवृक्षों के झुरमुटों से घिरा हुआ, जिनके बीच में स्वच्छ जल का झरना बहता हुआ । इस स्थान पर पहुंचते ही मैंने देखा कि एक छोटा-सा तम्बू तना हुआ है और घर के लोग तथा अन्य कार्यकर्ता कल की थकान के बाद आराम कर रहे हैं । इस दृश्य को पूर्णता प्रदान करता हुआ जैसा, एक पड़ौसी के घोड़े पर सवार, हाथ में भाला लिए झुरमुट में प्रविष्ट हुआ, जहाँ से एक सुपुष्ट घोड़ी की नंगी पीठ पर सवार केवल रस्से की लगाम बनाए एक खिलाड़ीकी - सी आकृति सहज ही कन्धों पर कम्बल डाले पूरी तेजी से दौड़ती दिखाई दी । मेरे पास से निकलते हुए उसने बहुत बादर से सलाम की । इस मूर्ति के बारे में जब जेसा से पूछा गया तो उसने बताया कि वह पास ही की ढाणी का स्वामी बाल राजपूत था और अपनी खोई हुई गाय की तलाश में आया था । यद्यपि यह कोई नया दृश्य नहीं था फिर भी मुझे बहुत पसन्द आया क्योंकि यह सभी जगह के राजपूती रीति-रिवाजों के अनुकूल था । यह बाल राजपूत जिस ढाणी का स्वामी था उसमें तीन ही घर थे- दो कोलियों के और एक कुणबी का । बाद में, वह अपने स्वजातीय 'झिरी' के भूमिया के साथ हम से मिलने श्राया । इन के मुखों और अंगों पर प्रकृति ने यौवन की छाप लगा दी थी; एक के चेहरे पर लम्बी दाढ़ी थी, जिसके सिरे दो नोकों में विभक्त थे और दूसरा अभी बाईस वर्ष का सुपुष्ट युवक था । जेसाजी उनको भली भांति जानता था और निःसंकोच अनुमान लगाया जा सकता है कि 'बहुत से भले आदमियों को 'ठहर जा' इस तरह दकालने में वे साथ रहे होंगे ।' प्रायद्वीप पर बसने वाली विभिन्न
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