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प्रकरण - १५; काठी बेसाजी जो उनके भले अपग्राहक ने ऐसा पढ़ा दिया था कि जिससे उन पर पहला प्रभाव जमाने में धोखा नहीं हुमा। लगान की, अथवा लूट की कहिये, अन्तिम 'किश्त' की कौड़ियां कमरबन्ध में बांधे वे चुपचाप अपने पहाड़ी निवास को लौट रहे थे कि उन्हें घेर लिया गया, पूरे सफर की साथिन घोड़ी से उतार दिया गया और बुरी तरह बांध कर गोंडल के किले में डाल दिया गया। परन्तु, जेसाजी की बुद्धि ने साथ न छोड़ा; नये घर के किसी भाग से निकाली हुई एक कील उनकी बेड़ियां खोलने का औजार बन गयी और आधी रात का मौका देख कर गर्दन टूट जाने तक की जोखिम उठाते हुए वे जेल की दीवार से कूद पड़े। भाग्य से कोई चोट न पाई और कुछ ही घण्टों में वे सही सलामत एक काठी गांव में जा पहुंचे। कहानी का उपसंहार करते हुए उन्होंने अपनी घोड़ी को रख लेने पर रोष प्रकट किया; उनके समझ में नहीं पा रहा था कि वे किस कायदे से उस घोड़ी को रख सकते थे और उनसे कौड़ियां छीन सकते थे, जो उन्होंने अपनी तलवार के बल पर, बहुत दिनों से अमल में आने के कारण अपने मूल अधिकार के प्राधार पर वसूल की थीं ? जेसाजी की प्राकृति देखते हुए उनका यह कथन ठीक मालूम पड़ता था कि 'मैंने लोगों को चिथड़े छोड़ने के लिए डराया ज़रूर, परन्तु कभी खून नहीं बहाया।' दस्यु की भाषा में चिथड़े के अन्तर्गत साफा, पगड़ी और ऐसी ही चीजें अथवा 'कोई भावनगर की गाय, भैस या घोड़ा-घोड़ी जो भो रास्ते में मिल जाय' आते हैं। इस पुराने दस्यु ने पाटण तक इन पहाड़ियों में हमारा मार्ग-दर्शक बनना स्वीकार कर लिया है और कहता है कि हर पहाड़ी क्या, इसका एक-एक पत्थर उससे छुपा नहीं है। इसमें कोई सन्देह की बात भी नहीं है । बिछुड़ने से पहले शायद कुछ और कहानियां भी सुनने को मिलेंगी। ___ इस प्रायद्वीप के घूमन्तु लोगों के रीतिरिवाजों के बारे में उदाहरण के लिए एक और भी घटना का वर्णन कर दूं। जब हम कल की यात्रा में उधर से निकले तो एक ब्राह्मण हमें चरूरी के काठी सरदार के यज्ञ में ले जाने लगा। चरूरी आठ हजार रुपये की वार्षिक आय का गांव है। वहां के ठाकुर ने ब्राह्मण भोजन के अतिरिक्त एक मन्दिर बनवा कर उसका प्रबन्ध भी किया था और साथ ही प्रत्येक त्यागी योगी को एक-एक रुपया और एक-एक कम्बल दान में दिया था। संक्षेप में, हमारे पथ-प्रदर्शक ने उसका पूरे सन्त का सा चित्रण उपस्थित किया। इन भले-लुटेरों की खोह के बीच में रहने वाले इस एकाकी धार्मिक मनुष्य का इतिहास जानने की उत्सुकता से मैंने और भी पूछताछ की तो पता चला कि कभी काठियावाड़ की 'भायाद' में वह बहुत ही साहसी और कुख्यात रहा है।
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