SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १५: सूबेदार से मुलाकात ; देवला [ ३१९ से सम्बद्ध थे; छत पर सुरुचिपूर्ण कोरनिस की सजावट हो रही थी और चार चमकदार कटे हुए काच के झाड़ लटक रहे थे; बीच-बीच में गोल दीपक को हॉडियाँ भी पंक्तिबद्ध आलम्बित थीं। इस विशाल हाल के चारों प्रोर पूरे बीस फीट चौड़ा एक बरामदा था जिसकी रंगीन लकड़ी की बनी हुई ढालू छत से भी ऐसे ही दीपकों की पंक्तियां लटक रही थीं। दीवानखाने के ऊपरी हिस्से में हम लोगों के लिए कुर्सियाँ लगी हुई थीं। ठीक सामने ही एक फव्वारा पूरी रफ़्तार से चल रहा था, जिसके प्रोस सदृश चमकदार माध्यम से हमने प्रकाशमान आतिशबाजी देखी जो विशाल श्राँगन में जलाई जा रही थी । स्पष्ट है कि इस जंगली क्षेत्र में 'सहस्त्र - रजनी- चरित्र' के से दृश्य देख कर हुआ प्राश्चर्य थोड़ा नहीं था क्योंकि कुछ ही वर्षों पहले यहाँ दलदली लुटेरों के घोड़ों की rai प्रथवा घाड़े की सूचनाओं के अतिरिक्त और कुछ सुनाई ही नहीं देता था । हम अपने मेजमान के साथ पूरे एक घण्टे तक विनोदपूर्ण बातें करते हुए बैठे रहे; वह सभ्य, सलीकेवाला और समझदार आदमी था। इसके अनन्तर, हमारे इत्र लगा कर गुलाबजल छिड़का गया और सुवासित पान के बीड़े पेश किये गये, जिनको खाना या न खाना हमारी इच्छा पर छोड़ दिया गया था । देवला - नवम्बर २३ वों - हमारे दस कोस के अनुमान के विरुद्ध यह पूरे सत्ताईस मील की बड़ी लम्बी और साथियों को थका देने वाली मंज़िल निकलीं । हम ठहरने के मुकाम पर पहुँचे उससे पहिले ही सूर्य आकाश के मध्य में चढ़ चुका था और हम यह जान कर और भी परेशान हुए कि तुलसीशाम, जिसके कारण गिरनार का सीधा मार्ग छोड़ कर हम इस रास्ते श्राये थे, यहां से अभी छः के बजाय दस कोस था; और तुर्रा यह कि मार्ग टेढ़ा मेढ़ा और पहाड़ों में होकर जाता था इसलिए हमें इसे दो मंजिलों में बांटना पड़ेगा । इसकी तो कोई परवाह न थी, परन्तु समय निकला जा रहा था और वे लोग बहुत दूर बैठे थे जो यह समझे हुए थे कि मैं गहरे समुद्र पर चल रहा हूँ जब कि मैं अभी यहां काठियावाड़ के जंगलों में ही मंजिलें तय कर रहा था । आज प्रातः दस बजे तक हवा प्रसन्नता और ताज़गी देने वाली थी परन्तु हमारे डेरे तक पहुँचते-पहुँचते थर्मामीटर ९०° तक जा चुका था । इस क्षेत्र में खेतीबाड़ी खूब है और सिंचाई के लिए चमड़े का चड़स, जिसको चलाने के लिए एक ही आदमी काफी है, सर्वत्र प्रचलित है । उद्योग के सभी यन्त्रों के समान इस प्रान्त में इस चड़स की बनावट और उपयोग भी अत्यन्त सरल है । यद्यपि समस्त भारत में कुछ ऐसे ही चड़स काम में लाये जाते हैं परन्तु हू-ब-हू ऐसा ही तो मेरे देखने में और कहीं नहीं आया । मैं यहां इसका एक खाका दे रहा हूँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy