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________________ ३१८] पश्चिमी भारत की यात्रा है जितनी तत्परता से कि वह सिनसिनाटस (Cincinnatus)' की भूमिका अदा करने को तलवार हाथ में लेने के लिए तैयार रहता है । अपना दैनिक कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व वह तलवार को हल को लकीर में दृढ़ता से गाड़ देता है मानों यह कहने को कि 'या तो यह खेत में रहे अथवा खेत धनी के पास ।' अनवरत संघर्ष से जीवन को एकाकी शान्ति में बदलने के कारण परस्पर विरोधी भाव उसके मन में अवश्य उठते होंगे; और, इन लोगों को पुराने वैरियों एवं उत्पीड़क स्वामियों से घिरे देख कर इनकी सैनिक तथा श्रमिक प्रवत्तियों में अलगाव से मुझे भी खेद होता है, परन्तु मैं चाहता हूँ कि अत्याचार का डट कर मकाबला करने को तैयार रहते हुए भी ये शान्ति के वरदान का आदर करना सोखें और जब तक इनके अधिकार सुरक्षित हैं तब तक, हमें आशा है कि, इनकी गैर-काननी प्रवत्तियों पर, (उनके) उस ऊंचे अदम्य उत्साह को बिना भंग किए भी, नियन्त्रण रखा जा सकता है, जिसके बल पर इनकी मानसिक स्वतंत्रता सिकन्दर के समय से अब तक टिकी चली आ रही है। तीसरे पहर प्रान्त का सूबेदार गोविन्दराव हमसे मिलने आया। थोड़ी देर बातचीत करके हम साथ साथ शहर देखने निकले और बाद में उसके निवासस्थान तक भी गये । अमरेली का मुख्य बाजार अच्छा लम्बा-चौड़ा और श्रमिक प्राबादी से पाकीर्ण है । बोच में एक चौक है जहाँ से गलियां फैटती हैं। भीतरी घेरे के उत्तर-पश्चिमी कोने पर एक शस्त्रागार है, जो यद्यपि अधिक बड़ा नहीं है परन्तु मजबूत है। यह दामोजी के शासनकाल में बना था। इसके सामने हो एक अच्छे परकोटे वाला चौक है, जिसमें खपरैल की छत के नीचे गायकवाड़ का तोपखाना लगा हुआ है । ज्यों ही हम गवर्नर (सूबेदार) के निवास स्थान में प्रविष्ट हुए, पांच तोपों को सलामो दागी गई। मेरी समझ में, सौराष्ट्र के सूबेदार के निवास में प्रवेश करने से अधिक आश्चर्योत्पादक कोई बात किसी यूरोपीय यात्री के लिए नहीं हो सकती, विशेषतः जब कि वह अपने देश से नया ही आया हुआ हो। हम लोग एक बड़े दीवानखाने में गये जो पचास फीट लम्बा, बीस फीट चौड़ा और इससे कुछ अधिक ऊँचा होगा; इसके दोनों और छः छः खम्भे थे जो मेहराबों , Cincinnatus (सिनसिनाटस) एक रोमन वीर था । ई० पू० ४६० में वह अपने पद से निवत्त होकर खेतों में काम करने चला गया था। ई० पू० ४५८ में जब रोम पर प्राक्रमण हुआ तो उसे खेत छोड़ कर शासक बनने के लिए बुलाया गया। उसने शत्रु को परास्त किया और पुनः खेत को लौट गया । ई० पू० ४३६ में अस्सी वर्ष की अवस्था में एक बार फिर वह डिक्टेटर बना, परन्तु उसी वर्ष उसकी मृत्यु हो गई।-N.S.E; p. 258 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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