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________________ १५; काठी क्षेत्र | ३१७ फसलों से यहां की फसल भी बढ़िया है। सात मील तक लगातार गेहूँ के पौधे भरपूर लहलहा रहे थे और तिल भी कम नहीं था, परन्तु चना कुछ कमज़ोर था। गाँवों की दशा बहुत गरीब दिखाई देती थी और वहां की मिट्टी की दीवारें काठियों से बचाव करने के लिए पर्याप्त नहीं थीं । प्रकरण पास पहुँचने पर अमरेली का क़स्बा आकर्षक लगा । इसके चारों ओर पक्का परकोटा है, जिसमें जगह-जगह बड़ी-बड़ी गोल बुर्जे बनी हुई हैं । परकोटे के भीतर कोई दो हजार घरों की बस्ती होगी और यह उत्तरी मुख की ओर एक छोटे-से नाले से घिरा हुआ है । यहां पर प्रान्तीय शासक ( गवर्नर ) रहता है और 'खास' होने के कारण यह पांच जिलों का मुख्य शहर है, इसीलिए इसकी दशा सम्पन्न । जब से ब्रिटिश सरकार ने इस प्रायद्वीप के करद सामन्तों को संरक्षण दिया है तब से तो यहाँ और भी अधिक सुधार हो गया है । विशाल गिरिनार की सूच्याकार प्राकृति स्पष्ट होती जा रही थी और थोड़ी ऊंचाई पर चढ़ कर देखने से तो इसके सभी शिखर, जो इसे शत्रुञ्जय से सम्बद्ध करते हैं, हमारे बाईं ओर एक अर्द्ध-गोलाकार में दौड़ते हुए से दिखाई पड़ते थे । अब हम काठी क्षेत्र के बीचोंबीच श्रा पहुँचे हैं, जो गोहिलों की भूमि से घाघरा नदी द्वारा विभाजित होता है । आज प्रातःकाल ही में एक ठेठ काठी पुरुष को देख कर कृतार्थ हो गया। वह अपने गेहूँ के खेतों की रक्षा के लिए जा रहा था, जिनकी बड़ी मेहनत से सिंचाई की गई थी और जो उसकी देह के समान ही एक विशुद्ध प्राकृतिक उपज के नमूने थे। उसकी पुरुषाकृति, खुला हुना चेहरा और स्वतंत्र चाल देख कर पीछे छोड़े हुए क्षेत्रों के तथा गङ्गातटीय भारत के चिन्ताग्रस्त किसानों से उसमें स्पष्ट भिन्नता पाई जाती थी। उसकी निगाहों से मालूम होता था कि वह खेत उसी का था और उपज का लगान ( दशमांश ) वसूल करने में उस पर दबाव की अपेक्षा सोहार्द अधिक प्रभावशील हो सकता था। सभी बातें क़ायदे की थीं; बैल बड़े-बड़े और सुपुष्ट ; विशेष प्रकार की पोशाक पहने हुए सभी काठी हलवाहों ने हमारा हृदय से अभिवादन किया और हमारे प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर दिये । वे सीधे खड़े रहते थे और मानो यह जताते थे कि मानव जाति में उनका भी कोई महत्वपूर्ण स्थान है । प्रत्येक काठी में यद्यपि पूर्ण राजपूती शौर्य और गर्व भरा है परन्तु इतनी ही असमानता है कि वह 'हल की पूजा करता है; फिर भी, जब वह अपने प्रौजार ( यन्त्र) को हाथ में लेता है तो उतनी ही समझदारी और शान से लेता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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