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________________ प्रकरण १५ गोरियाधार; प्रान्त की रूपरेखा; दम्मनगर, कृषि; पाकला; महामारी का प्रकोप अमरेली; काठी क्षेत्र; काठियों की पुरुषाकृति; सौराष्ट्र प्रान्त का अधिपति, सिंचाई के यन्त्र ; प्रामों के क्षुद्र दृश्य; लुभावनी मृगमरीचिका; देवला; एक काठी सरवार; पूर्वीय और पश्चिमी जातियों के रीतिरिवाजों में समानता; अंसाजी की कथा; एक डाक् का सन्त में परिवर्तन; गढ़िया; काठियों को श्रावते; पाण्डवों का शरणस्थल, कुन्ती की कथा; बलदेव की मूत्ति; तुलसीशाम; कृष्ण और दैत्य के युद्ध की झांकी; मन्दिर; हमारे मानचित्रों में इस भाग का गलत भूगोल; दोहन, खनिज सूचनायें; कौरवार; इस क्षेत्र के चरवाहे। श्रेष्ठ पशुधन; मूल द्वारका का पवित्र पर्वत; शूद्रपाड़ा; कृषक बस्ती में सुधार; सूर्यमन्दिर; सरस्वती का उद्गम । गोरियाधार - नवम्बर - हमें इस स्थान तक पाने में लगभग सत्रह मील उपजाऊ भूमि का रास्ता तय करना पड़ा-उपजाऊ इस अर्थ में कि यहाँ की मिट्टी उर्वर है, यद्यपि खेतीबाड़ी तो कुछ गांवों के पास-पास ही होती है। यहाँ के मंदान भी क्रमशः ऊँचे-नीचे हैं; कहीं तो कुछ मीलों की परिधि में ही दृष्टि अवरूद्ध हो जाती हैं और कहीं शत्रुञ्जय पर्वत और दक्षिण की ओर बढ़ती हुई प्रवर श्रेणियों का दृश्य भी सामने खुल जाता है । इस भू-भाग में वृक्षावली बहुत विरल है; केवल गांवों के आसपास उगे हुए कुछ प्रामों और नीमों के पेड़ों से आँखों को सुख मिल जाता है और जंगलों में तो बबल ही बबल उगे हुए हैं, जो किसी अंश में दश्य की गम्भीरता की रक्षा कर लेते हैं। पूर्व अध्याय में वणित कारणों के अनुसार गोरियाधार में देखने योग्य कुछ भी नहीं है, फिर भी, यह एक मुख्य टूक है और पालीताना के ठाकुर के सम्बन्धी का निवास स्थान है। दम्मनगर-नवम्बर १९वों - यह बारह मील की छोटी-सी यात्रा थी। गायकवाड़ का 'खास' तालुका होने के कारण कृषकों को संरक्षण प्राप्त था, इसलिए यह स्थान अच्छी खेती के लिए प्रसिद्ध था । पहले, यह गोहिलों के अधिकार में था पर बाद में उनसे ले लिया गया और अब तो यह अमरेली विभाग का एक हिस्सा है। प्राचीन काल में इसका कोई हिन्दू नाम था, परन्तु प्रथम दक्षिणी शासक दामोजी ने इसको अपने ही नाम पर नाम और संरक्षण दिया। यह वही दामोजी था जिसने पाटण का कोट बँधवाया था। हमने काले गन्ने के कुछ हरे-भरे खेत देखे और नवीन धान तथा तिल (मीठा तेल) और उपयोगी मंग के पौधे भी बहुतायत से लहलहा रहे थे। परन्तु, सियालू फसल के ज्वार और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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